Friday, October 9, 2015

विभीषण कृत हनुमान स्तोत्र - Vibheeshan Krut Hanuman Stotra


**********************
।।**विभीषण कृत हनुमत्स्तोत्रम्**।।
**********************




श्रीसुदर्शनसंहिता में भक्त प्रवर विभीषण महात्मा गरुड़ को श्रीमारुति की महिमा सुनाते हुए कहते हैं कि सर्व प्रकार के भय, बाधा, संताप तथा दुष्ट गृहजन्य समस्त संकटों का उन्मूलन करने वाला श्री हनुमान जी का यह स्तोत्र है। कल्याणकांक्षी मनुष्य यदि नित्य प्रति इसका पाठ करता है तो वह सर्वबाधाजन्य संकटों से मुक्त हो मारुति की कृपा से सुख, शान्ति एवं समृद्धि को प्राप्त करता है। स्तोत्र इस प्रकार है :



नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे।
नम: श्रीरामभक्ताय श्यामास्याय च ते नम:।। 1।।

नमो वानरवीराय सुग्रीवसख्यकारिणे।
लंकाविदाहनार्थय हेलासागरतारिणे।। 2।।

सीताशोकविनाशाय राममुद्राधराय च।
रावणान्तकुलच्छेदकारिणे ते नमो नम:।। 3।।

मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नम:।
अशोकवनविध्वंसकारिणे भयहारिणे।। 4।।

वायुपुत्राय वीराय आकाशोदरगामिने।
वनपालशिरश्छेदलंकाप्रासादभज्जिने।। 5।।

ज्वल्तकनकवर्णाय दीर्घलाङ्गूलधारिणे।
सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नम:।। 6।।

अक्षस्य वधकत्र्रे च बह्मपाशनिवारिणे।
लक्ष्मणांगमहाशक्तिघातक्षतविनाशिने।। 7।।

रक्षोघ्नाय निपुघ्नाय भूतघ्नाय च ते नम:।
ऋक्षवानरवीरौघप्राणदाय नमो नम:।। 8।।

परसैन्यबलध्नाय शस्त्रास्त्रघ्नाय ते मन:।
विषध्नाय द्विषघ्नाय ज्वरघ्नाय च ते नम:।। 9।।

महाभयरिपुघ्नाय भक्तत्राणैककारिणे।
परप्रेरितमन्त्राणां यन्त्राणां स्तम्भकारिणी।। 10।।

पय:पाषाणतरणकारणाय नमो नम:।
बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे।। 11।।

नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च।
रिपुमायाविनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे।। 12।।

प्रतिग्रामस्थितायाथ रक्षोभूतवधार्थिने।
करालशैलशस्त्राय दु्रमशस्त्राय ते नम:।। 13।।

बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्तिधराय च।
विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नम:।। 14।।

कौपीनवाससे तुभ्यं रामभक्तिरताय च।
दक्षिणाशाभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने।। 15।।

कृत्याक्षतव्याथाघ्नाय सर्वक्लेशहराय च।
स्वाम्याज्ञापार्थसंग्रामसंख्ये संजयधारिणे।।16।।

भक्तान्तदिव्यवादेषु संग्रामे जयदायिने।
किल्किलाबुबुकोच्चारघोरशब्दकराय च।।17।।

सर्पाग्निव्याधिसंत्तम्भकारिणी वनचारिणे।
सदा वनफलाहारसंतृप्ताय विशेषत:।।18।।

महार्णवशिलाबद्धसेतुबन्धाय ते नम:।
वादे विवादे संग्रामे भये घोरे महावने।।19।।

सिंहव्याघ्रादिचौरेभ्य: स्तोत्रपाठाद् भयं न हिं
दिव्ये भूतभये व्याधौ विषे स्थावरजंगमे।।20।।

राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च।
जले सर्वे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवे।।21।।

पठेत् स्तोत्रं प्रमुच्यते भयेभ्य: सर्वतो नर:।
तस्य क्वापि भयं नास्ति हनुमत्स्तवपाठत:।।22।।

सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयमिमं स्तवम्।
सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा।। 23।।

विभषणकृतं स्तोत्रं ताक्ष्र्येण समुदीरितम्।
ये पठिष्यन्ति भक्त्या वै सिद्धयस्तत्करे स्थिता:।। 24।।


इति श्रीसुदर्शनसंहितायां विभीषणगरुडसंवादे विभषणकृतं हनुमत्स्तोत्रं सम्पूर्णम्।


माता महाकाली शरणम् 

1 comment:

Anonymous said...

'उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः August 30, 2019 | aspundir | 1 Comment ॥ अथ उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः ॥ उच्छिष्ट गणपति का प्रयोग अत्यंत सरल है तथा इसकी साधना में अशुचि-शुचि आदि बंधन नहीं हैं तथा मंत्र शीघ्रफल प्रद है । यह अक्षय भण्डार का देवता है । प्राचीन समय में यति जाति के साधक उच्छिष्ट गणपति या उच्छिष्ट चाण्डालिनी (मातङ्गी) की साधना व सिद्धि द्वारा थोड़े से भोजन प्रसाद से नगर व ग्राम का भण्डारा कर देते थे । इसकी साधना करते समय मुँह उच्छिष्ट होना चाहिये । मुँह में गुड़, पताशा, सुपारी, लौंग, इलायची ताम्बूल आदि कोई एक पदार्थ होना चाहिये । पृथक-पृथक कामना हेतु पृथक-पृथक पदार्थ है । यथा -लौंग, इलायची वशीकरण हेतु । सुपारी फल प्राप्ति व वशीकरण हेतु । गुडौदक – अन्नधनवृद्धि हेतु तथा सर्व सिद्धि हेतु ताम्बूल का प्रयोग करें । अगर साधक पर तामसी कृत्या प्रयोग किया हुआ है, तो उच्छिष्ट गणपति शत्रु की गन्दी क्रियाओं को नष्ट कर साधक की रक्षा करते हैं। ॥ अथ नवाक्षर उच्छिष्टगणपति मंत्रः ॥ मंत्र – हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । विनियोगः – ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट गणपति मन्त्रस्य कंकोल ऋषिः, विराट् छन्दः, उच्छिष्टगणपति देवता, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः – ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषिः नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे, उच्छिष्ट गणपति देवता नमः हृदये, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे । करन्यास ॐ हस्ति अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नमः । ॐ लिखे मध्यमाभ्यां नमः । ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । हृदयादिन्यासः- ॐ हस्ति हृदयाय नमः । ॐ पिशाचि शिरसे स्वाहा । ॐ लिखे शिखायै वषट् । ॐ स्वाहा कवचाय हुम् । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा अस्त्राय फट् स्वाहा । ॥ ध्यानम् ॥ चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेत्रं पाशाङ्कुशौ मोदकपात्रदन्तौ । करैर्दधानं सरसीरुहस्थमुन्मत्त गणेश मीडे । (क्वचिद् पाशाङ्कुशौ कल्पलतां स्वदन्तं करैवहन्तं कनकाद्रि कान्ति) ॥ अथ दशाक्षर उच्छिष्ट गणेश मंत्र ॥ मन्त्रः – १॰ गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । २॰ ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ द्वादशाक्षर उच्छिष्ट गणेश मंत्र ॥ मन्त्रः – ॐ ह्रीं गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ एकोनविंशत्यक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ मन्त्रः- ॐ नमो उच्छिष्ट गणेशाय हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ मन्त्रः- ॐ नमो हस्तिमुखाय लंबोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा । विनियोगः- अस्योच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः, गायत्री छन्दः , उच्छिष्ट गणपतिर्देवता, ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ॥ अथ एक-त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ADD ameya jaywant narvekar