श्रीछिन्नमस्ता षोडशोपचार पूजन विधि - Chhinnamasta Pujan - Chhinnamasta Shodsopchar Pujan Vidhi
श्री छिन्नमस्तिका धाम या माता चिंतपूर्णी की कथा :-
माँ छिन्नमस्तिका चिंताओं का हरण करने वाली माँ हैं . माँ के चरणों में जिस किसी ने भी सच्चे मन से भक्ति की , उसके कष्टों का तुंरत निवारण हो गया. इसी कारण से माँ के भक्तों ने माता छिन्नमस्तिका को माँ चिंतपूर्णी के नाम से पुकारना आरम्भ किया . .
इस धरा के भय मुक्त हो जाने के पश्चात् भगवान् विष्णु ने माता छिन्नमस्तिका को पृथ्वी लोक पर ही विश्राम करने को कहा साथ ही यह वरदान भी दिया कि कलियुग में माँ की शक्तियां भी बढती जायेंगी. ऐसा ही वरदान भगवान् भोले शंकर ( शिव ) ने भी दिया था कि कलियुग के अंतिम चरण में इस सृष्टि का संचालन दस महाविद्याओं द्वारा किया जायेगा. ऐसी मान्यता है कि माँ छिन्नमस्तिका भी इन्हीं दस महाविद्याओं में एक हैं. तेरहवीं शताब्दी के महान दुर्गा भक्त बाबा माई दास को माँ ने सर्व-प्रथम इसी स्थान पर साछात दर्शन दिए थे. इसके साथ ही साथ एक कथा यह भी प्रचलित है कि माँ छिन्नमस्तिका को इस स्थान पर जालंधर नामक दैत्य ने स्थापित किया था. ऐसी मान्यता भी है कि इस स्थान पर जो भक्त शैव और शाक्त कि आराधना करता है, उसे अपनी पूजा का चार गुना फल मिलता है.
बाबा माई दास को साक्षात दर्शन :-
बाबा माईदास ने ही सर्वप्रथम माँ चिंतपूर्णी के निवास कि खोज की थी व बाबा माईदास को ही माँ चिंतपूर्णी ने सर्वप्रथम दर्शन दिए थे . लोक मान्यता व जनश्रुतिनुसार भक्त बाबा माईदास अपने ससुराल जाते समय मार्ग में विश्राम करने हेतु एक बट-वृक्ष के नीचे बैठे और उनकी आँख लग गई. स्वप्न में माँ ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि " हे-माईदास ,तुम यहीं रह कर मेरी सेवा करो इसी से तुहारा कल्याण होगा." आँख खुलने पर बाबा ने वहां कुछ नहीं पाया . पूर्व से ही माँ भगवती के प्रति अपार आस्था व श्रद्धा रखने के कारण बाबा माँ भगवती के उपासक थे . इस स्वप्न के बाद कई दिन तक विचलित यहाँ-वहां भटकने के पश्चात माईदास पुनः उसी स्थान पर लौट आये जहां माता ने उन्हें दर्शन दिए थे. उसी स्थान उन्होंने माँ का स्मरण करना आरम्भ किया और प्रार्थना करने लगे कि " हे माँ मैं तो तुच्छ और बुद्धिहीन हूँ ,यदि मेरी आस्था और भक्ति सच्ची है तो मुझे मार्ग दिखाओ." माईदास कि सरलता व भक्ति से प्रसन्न हो माँ ने एक अत्यंत ही तेजस्वी स्वरुप वाली कन्या के रूप में साक्षात दर्शन दिए और कहा कि यहाँ रह कर उनकी पूजा करें . शंकित हो बाबा ने सरलता से माँ से पूछा कि इस घने जंगल में रहने व खाने की बात तो दूर ,पीने को पानी भी नहीं है . इस भयावह जंगल में वह किस के सहारे रहेंगे ? तब माँ ने मुस्कुरा कर कहा- " चिंता मत करो और पास पड़ा यह पत्थर उखाडो " . इतना कह कर माँ पिंडी के रूप में वहीँ विराजमान हो गईं.
बाबा ने माँ द्वारा बतलाये गए स्थान से पत्थर उखाड़ा तो वहां से एक तेज जल-धारा बह निकली . जिसे देख कर बाबा कि ख़ुशी का ठिकाना न रहा और वह उसी माँ स्वरूपिणी पिंडी कि सेवा व अर्चना में लग गए व वहीँ पास ही कुटिया बना कर रहने लगे. वह ऐतिहासिक पत्थर आज भी वहां विद्यमान है और जिस स्थान से पानी निकला था वह एक पवित्र बावड़ी के रूप में आज भी वहीँ है और माँ चिंतपूर्णी के मंदिर के लिए पवित्र जल इसी बावड़ी से लाया जाता है.शिव मंदिरों द्वारा रक्षित माँ चिंतपूर्णी धाम
प्राचीन धार्मिक-ग्रंथों में यह वर्णन मिलता है कि माँ छिन्नमस्तिका के निवास स्थान के लिए चारों दिशाओं में रुद्रदेव (शिव) का संरक्षण होना आवश्यक है. अर्थात वह स्थान चहुँ-दिशाओं से सामान दूरी से शिव मंदिरों द्वारा रक्षित होगा . यह लक्षण माँ श्री चिंतपूर्णी धाम पर शत-प्रतिशत सत्य लक्षित होते हैं . माँ श्री चिंतपूर्णी धाम के चहुँ दिशाओं में सामान दूरी (२३-२३ किलो मीटर ) पर ऐतिहासिक शिव मंदिर स्थापित हैं . उदाहरण स्वरुप : पूर्व दिशा में श्री कालेश्वर महादेव , पश्चिम में श्री नरयाना महादेव ( यह दोनों मंदिर वर्तमान में ब्यास नदी पर पोंग-बाँध बनने के फलस्वरूप जलमग्न हो चुके है) , दक्षिण दिशा में श्री शिवबाड़ी मंदिर (गगरेट ) और उत्तर दिशा में श्री मुचकुंद महादेव (डालियारा नामक स्थान के निकट ) के मंदिर हैं . माँ ने जब बाबा माईदास को साक्षात् दर्शन दिए थे तब स्वयं कहा था कि उनका निवास स्थान इन देव स्थानों के ही मध्य स्थित है और इस सीमा के अन्दर वह भय-मुक्त हो कर रह सकते है , अर्थात इन चार शिवालयों द्वारा रक्षित सीमा के भीतर .
चिंता-हरण चमत्कारी माँ श्री छिन्नमस्तिका (माँ चिंतपूर्णी ):-
ऐसी मान्यता है कि माँ चिंतपूर्णी मैं आस्था रखने वाले व दर्शन करने वाले भक्तों की न केवल चिंताएँ ही दूर होती हैं बल्कि भक्तों के असंभव कार्य भी पलक झपकते ही पूरे हो जाते हैं. चिंता- हरण माँ ने तो भक्तों व उनके परिवारों की जिन्दगी ही बदल कर रख दी हैं. देश ही नहीं विदेशों मैं रहने वाले माँ के भक्त हजारों-लाखों कि संख्या मैं यहाँ माथा टेकने आते हैं. वर्ष २००२ की ही बात करें तो इंग्लॅण्ड में रहने वाले भारतीय मूल के श्री रोशन (मूल निवासी मेहरी गेट , सिक्खां मोहल्ला ,फगवाडा ) की धरमपत्नी श्रीमती रानी पिछले साडे तीन वर्षों से पक्षाघात के कारण बोलने में असमर्थ हो गई थीं . बहुत इलाज करवाने के पश्चात् भी कुछ लाभ नहीं हुआ और पत्नी श्रीमती रानी को घोर निराशा ने घेर लिया . तब मन में माँ चिंतपूर्णी के लिए गहन आस्था व श्रद्घा लिए रोशन लाल जी चिंतपूर्णी धाम बस-अड्डे से पेट के बल दंडवत होकर माँ के दरबार में सपरिवार अपनी पत्नी के स्वस्थ होने कि कामना लेकर आये. मंदिर परिसर में बैठी पत्नी ने जब अचानक जोर से माँ का जय-कारा लगा दिया तो सारे परिवार कि ऑंखें छलक गईं और सारे इलाके में यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई. इससे पूर्व जम्मू से आया एक सोलह वर्षीया गूंगा बालक भी माँ के चमत्कार से बोलने लगा था. माँ के भक्तों पर ऐसे चमत्कार होते ही रहते हैं ऐसी भक्तों की मान्यता है. .
पूजन क्रम में गुरु एवं गणपति पूजन संपन्न करें :-
गुरु पंचोपचार पूजन :-
ॐ गुं गुरुवे गन्धं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए गन्धादि द्रव्य / इत्र समर्पित करें )
ॐ गुं गुरुवे पुष्पं समर्पयामि (उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करें )
ॐ गुं गुरुवे धूपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए धुप / अगरबत्ती समर्पित करें )
ॐ गुं गुरुवे दीपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए दीपक जलाएं )
ॐ गुं गुरुवे नैवेद्यं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए नैवेद्य { मिठाई / फल /खीर } इत्यादि का भोग लगाएं )
गुरु ध्यान :-
वराक्ष मालां दण्डं च कमन्सलधरं विभुं ।
पुष्यरागान्कितं पीतं वरदं भावयेत गुरुं ॥
बृहस्पते अतियदर्यो अर्हाद्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यद्देद याचन सर्तप्रजात तदास्म सुद्रविणं धेहिचित्रम ॥
यदि गुरु मन्त्र धारण किये हुए हैं तो एक माला गुरु मंत्र का जाप करें - यदि गुरु मन्त्रधारी नहीं हैं तो मानसिक रूप से किसी को गुरु स्वीकार करें और उनको साक्षी मानकर पूजन करें -!
विशेष :- बहुत से लोग यह कहते हैं की साधना में गुरु आवश्यक नहीं है या फिर यह कहते हुए मिल जाते हैं की भगवान शिव को गुरु स्वीकार करके पूजन कर्म का प्रारम्भ किया जा सकता है - मैं इस सिद्धांत से पुरे तरीके से सहमत हूँ लेकिन थोड़े से परिवर्तन के साथ - क्योंकि जगत व्यवहार और भौतिक शरीर धारी होने के हिसाब से भौतिक गुरु परम आवश्यक है - इसलिए पहले किसी भौतिक गुरु का वरण करें तत्पश्चात पूजन कार्य प्रारम्भ करें - एक सरल उपाय है गुरु वरण करने का -!
( अक्सर हमारे मन में कई बार किसी व्यक्ति की एक छवि होती है और हमारी नजर में वह इस योग्य होता है की वह हमारा मार्गदर्शन कर सके - अगर ऐसा कोई व्यक्ति या उसकी छवि आपके मन में है तो इसके लिए बिलकुल भी जरुरी नहीं है कि आप भरी-भरकम गुरु दक्षिणा की राशि भरकर गुरु दीक्षा लें ही लें - आप उस व्यक्ति को मानसिक रूप से गुरु स्वीकार कर सकते हैं इसके लिए कम से कम उस व्यक्ति का कोई चित्र आपके पास होना चाहिए यदि नहीं है तो हल्दी / turmuric की गाँठ को भी गुरु चित्र के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है एवं कोशिश यह करें की यदि संभव है तो उस मानसिक गुरु से वर्ष में एक बार संपर्क अवश्य करें और उसे यथोचित सम्मान प्रदान करें -!)
तत्पश्चात गणपति पूजन करें :-
गणपति पंचोपचार पूजन :-
ॐ गं गणपतये गन्धं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए गन्धादि द्रव्य / इत्र समर्पित करें )
ॐ गं गणपतये पुष्पं समर्पयामि (उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करें )
ॐ गं गणपतये धूपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए धुप / अगरबत्ती समर्पित करें )
ॐ गं गणपतये दीपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए दीपक जलाएं )
ॐ गं गणपतये नैवेद्यं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए नैवेद्य { मिठाई / फल /खीर } इत्यादि का भोग लगाएं )
गणपति ध्यान :-
माँ छिन्नमस्तिका चिंताओं का हरण करने वाली माँ हैं . माँ के चरणों में जिस किसी ने भी सच्चे मन से भक्ति की , उसके कष्टों का तुंरत निवारण हो गया. इसी कारण से माँ के भक्तों ने माता छिन्नमस्तिका को माँ चिंतपूर्णी के नाम से पुकारना आरम्भ किया . .
इस धरा के भय मुक्त हो जाने के पश्चात् भगवान् विष्णु ने माता छिन्नमस्तिका को पृथ्वी लोक पर ही विश्राम करने को कहा साथ ही यह वरदान भी दिया कि कलियुग में माँ की शक्तियां भी बढती जायेंगी. ऐसा ही वरदान भगवान् भोले शंकर ( शिव ) ने भी दिया था कि कलियुग के अंतिम चरण में इस सृष्टि का संचालन दस महाविद्याओं द्वारा किया जायेगा. ऐसी मान्यता है कि माँ छिन्नमस्तिका भी इन्हीं दस महाविद्याओं में एक हैं. तेरहवीं शताब्दी के महान दुर्गा भक्त बाबा माई दास को माँ ने सर्व-प्रथम इसी स्थान पर साछात दर्शन दिए थे. इसके साथ ही साथ एक कथा यह भी प्रचलित है कि माँ छिन्नमस्तिका को इस स्थान पर जालंधर नामक दैत्य ने स्थापित किया था. ऐसी मान्यता भी है कि इस स्थान पर जो भक्त शैव और शाक्त कि आराधना करता है, उसे अपनी पूजा का चार गुना फल मिलता है.
बाबा माई दास को साक्षात दर्शन :-
बाबा माईदास ने ही सर्वप्रथम माँ चिंतपूर्णी के निवास कि खोज की थी व बाबा माईदास को ही माँ चिंतपूर्णी ने सर्वप्रथम दर्शन दिए थे . लोक मान्यता व जनश्रुतिनुसार भक्त बाबा माईदास अपने ससुराल जाते समय मार्ग में विश्राम करने हेतु एक बट-वृक्ष के नीचे बैठे और उनकी आँख लग गई. स्वप्न में माँ ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि " हे-माईदास ,तुम यहीं रह कर मेरी सेवा करो इसी से तुहारा कल्याण होगा." आँख खुलने पर बाबा ने वहां कुछ नहीं पाया . पूर्व से ही माँ भगवती के प्रति अपार आस्था व श्रद्धा रखने के कारण बाबा माँ भगवती के उपासक थे . इस स्वप्न के बाद कई दिन तक विचलित यहाँ-वहां भटकने के पश्चात माईदास पुनः उसी स्थान पर लौट आये जहां माता ने उन्हें दर्शन दिए थे. उसी स्थान उन्होंने माँ का स्मरण करना आरम्भ किया और प्रार्थना करने लगे कि " हे माँ मैं तो तुच्छ और बुद्धिहीन हूँ ,यदि मेरी आस्था और भक्ति सच्ची है तो मुझे मार्ग दिखाओ." माईदास कि सरलता व भक्ति से प्रसन्न हो माँ ने एक अत्यंत ही तेजस्वी स्वरुप वाली कन्या के रूप में साक्षात दर्शन दिए और कहा कि यहाँ रह कर उनकी पूजा करें . शंकित हो बाबा ने सरलता से माँ से पूछा कि इस घने जंगल में रहने व खाने की बात तो दूर ,पीने को पानी भी नहीं है . इस भयावह जंगल में वह किस के सहारे रहेंगे ? तब माँ ने मुस्कुरा कर कहा- " चिंता मत करो और पास पड़ा यह पत्थर उखाडो " . इतना कह कर माँ पिंडी के रूप में वहीँ विराजमान हो गईं.
बाबा ने माँ द्वारा बतलाये गए स्थान से पत्थर उखाड़ा तो वहां से एक तेज जल-धारा बह निकली . जिसे देख कर बाबा कि ख़ुशी का ठिकाना न रहा और वह उसी माँ स्वरूपिणी पिंडी कि सेवा व अर्चना में लग गए व वहीँ पास ही कुटिया बना कर रहने लगे. वह ऐतिहासिक पत्थर आज भी वहां विद्यमान है और जिस स्थान से पानी निकला था वह एक पवित्र बावड़ी के रूप में आज भी वहीँ है और माँ चिंतपूर्णी के मंदिर के लिए पवित्र जल इसी बावड़ी से लाया जाता है.शिव मंदिरों द्वारा रक्षित माँ चिंतपूर्णी धाम
प्राचीन धार्मिक-ग्रंथों में यह वर्णन मिलता है कि माँ छिन्नमस्तिका के निवास स्थान के लिए चारों दिशाओं में रुद्रदेव (शिव) का संरक्षण होना आवश्यक है. अर्थात वह स्थान चहुँ-दिशाओं से सामान दूरी से शिव मंदिरों द्वारा रक्षित होगा . यह लक्षण माँ श्री चिंतपूर्णी धाम पर शत-प्रतिशत सत्य लक्षित होते हैं . माँ श्री चिंतपूर्णी धाम के चहुँ दिशाओं में सामान दूरी (२३-२३ किलो मीटर ) पर ऐतिहासिक शिव मंदिर स्थापित हैं . उदाहरण स्वरुप : पूर्व दिशा में श्री कालेश्वर महादेव , पश्चिम में श्री नरयाना महादेव ( यह दोनों मंदिर वर्तमान में ब्यास नदी पर पोंग-बाँध बनने के फलस्वरूप जलमग्न हो चुके है) , दक्षिण दिशा में श्री शिवबाड़ी मंदिर (गगरेट ) और उत्तर दिशा में श्री मुचकुंद महादेव (डालियारा नामक स्थान के निकट ) के मंदिर हैं . माँ ने जब बाबा माईदास को साक्षात् दर्शन दिए थे तब स्वयं कहा था कि उनका निवास स्थान इन देव स्थानों के ही मध्य स्थित है और इस सीमा के अन्दर वह भय-मुक्त हो कर रह सकते है , अर्थात इन चार शिवालयों द्वारा रक्षित सीमा के भीतर .
चिंता-हरण चमत्कारी माँ श्री छिन्नमस्तिका (माँ चिंतपूर्णी ):-
ऐसी मान्यता है कि माँ चिंतपूर्णी मैं आस्था रखने वाले व दर्शन करने वाले भक्तों की न केवल चिंताएँ ही दूर होती हैं बल्कि भक्तों के असंभव कार्य भी पलक झपकते ही पूरे हो जाते हैं. चिंता- हरण माँ ने तो भक्तों व उनके परिवारों की जिन्दगी ही बदल कर रख दी हैं. देश ही नहीं विदेशों मैं रहने वाले माँ के भक्त हजारों-लाखों कि संख्या मैं यहाँ माथा टेकने आते हैं. वर्ष २००२ की ही बात करें तो इंग्लॅण्ड में रहने वाले भारतीय मूल के श्री रोशन (मूल निवासी मेहरी गेट , सिक्खां मोहल्ला ,फगवाडा ) की धरमपत्नी श्रीमती रानी पिछले साडे तीन वर्षों से पक्षाघात के कारण बोलने में असमर्थ हो गई थीं . बहुत इलाज करवाने के पश्चात् भी कुछ लाभ नहीं हुआ और पत्नी श्रीमती रानी को घोर निराशा ने घेर लिया . तब मन में माँ चिंतपूर्णी के लिए गहन आस्था व श्रद्घा लिए रोशन लाल जी चिंतपूर्णी धाम बस-अड्डे से पेट के बल दंडवत होकर माँ के दरबार में सपरिवार अपनी पत्नी के स्वस्थ होने कि कामना लेकर आये. मंदिर परिसर में बैठी पत्नी ने जब अचानक जोर से माँ का जय-कारा लगा दिया तो सारे परिवार कि ऑंखें छलक गईं और सारे इलाके में यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई. इससे पूर्व जम्मू से आया एक सोलह वर्षीया गूंगा बालक भी माँ के चमत्कार से बोलने लगा था. माँ के भक्तों पर ऐसे चमत्कार होते ही रहते हैं ऐसी भक्तों की मान्यता है. .
पूजन क्रम में गुरु एवं गणपति पूजन संपन्न करें :-
गुरु पंचोपचार पूजन :-
ॐ गुं गुरुवे गन्धं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए गन्धादि द्रव्य / इत्र समर्पित करें )
ॐ गुं गुरुवे पुष्पं समर्पयामि (उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करें )
ॐ गुं गुरुवे धूपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए धुप / अगरबत्ती समर्पित करें )
ॐ गुं गुरुवे दीपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए दीपक जलाएं )
ॐ गुं गुरुवे नैवेद्यं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए नैवेद्य { मिठाई / फल /खीर } इत्यादि का भोग लगाएं )
गुरु ध्यान :-
वराक्ष मालां दण्डं च कमन्सलधरं विभुं ।
पुष्यरागान्कितं पीतं वरदं भावयेत गुरुं ॥
बृहस्पते अतियदर्यो अर्हाद्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यद्देद याचन सर्तप्रजात तदास्म सुद्रविणं धेहिचित्रम ॥
यदि गुरु मन्त्र धारण किये हुए हैं तो एक माला गुरु मंत्र का जाप करें - यदि गुरु मन्त्रधारी नहीं हैं तो मानसिक रूप से किसी को गुरु स्वीकार करें और उनको साक्षी मानकर पूजन करें -!
विशेष :- बहुत से लोग यह कहते हैं की साधना में गुरु आवश्यक नहीं है या फिर यह कहते हुए मिल जाते हैं की भगवान शिव को गुरु स्वीकार करके पूजन कर्म का प्रारम्भ किया जा सकता है - मैं इस सिद्धांत से पुरे तरीके से सहमत हूँ लेकिन थोड़े से परिवर्तन के साथ - क्योंकि जगत व्यवहार और भौतिक शरीर धारी होने के हिसाब से भौतिक गुरु परम आवश्यक है - इसलिए पहले किसी भौतिक गुरु का वरण करें तत्पश्चात पूजन कार्य प्रारम्भ करें - एक सरल उपाय है गुरु वरण करने का -!
( अक्सर हमारे मन में कई बार किसी व्यक्ति की एक छवि होती है और हमारी नजर में वह इस योग्य होता है की वह हमारा मार्गदर्शन कर सके - अगर ऐसा कोई व्यक्ति या उसकी छवि आपके मन में है तो इसके लिए बिलकुल भी जरुरी नहीं है कि आप भरी-भरकम गुरु दक्षिणा की राशि भरकर गुरु दीक्षा लें ही लें - आप उस व्यक्ति को मानसिक रूप से गुरु स्वीकार कर सकते हैं इसके लिए कम से कम उस व्यक्ति का कोई चित्र आपके पास होना चाहिए यदि नहीं है तो हल्दी / turmuric की गाँठ को भी गुरु चित्र के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है एवं कोशिश यह करें की यदि संभव है तो उस मानसिक गुरु से वर्ष में एक बार संपर्क अवश्य करें और उसे यथोचित सम्मान प्रदान करें -!)
तत्पश्चात गणपति पूजन करें :-
गणपति पंचोपचार पूजन :-
ॐ गं गणपतये गन्धं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए गन्धादि द्रव्य / इत्र समर्पित करें )
ॐ गं गणपतये पुष्पं समर्पयामि (उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करें )
ॐ गं गणपतये धूपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए धुप / अगरबत्ती समर्पित करें )
ॐ गं गणपतये दीपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए दीपक जलाएं )
ॐ गं गणपतये नैवेद्यं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए नैवेद्य { मिठाई / फल /खीर } इत्यादि का भोग लगाएं )
गणपति ध्यान :-
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं, लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं, सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम्।।
माता का पूजन प्रारम्भ :-
ध्यान रखें कि माँ की पूजा या अर्चना में कबंध का पूजन अति आवश्यक है - बिना कबंध पूजन के माँ की पूजा कभी भी फलदायी नहीं होती है ऐसा संतजनों और तंत्र शास्त्रों का कथन है एवं पूजन में तेल का प्रयोग कभी भूलकर भी ना करें सिर्फ घृतयुक्त दीपक ही जलाएं :-
अस्तु प्रथम कबंध रूप शिव की स्थापना करें तत्पश्चात पंचोपचार से पूजन करके निम्नलिखित मन्त्र की एक माला जाप करें :-
ॐ कबंधाय गन्धं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए गन्धादि द्रव्य / इत्र समर्पित करें )
ॐ कबंधाय पुष्पं समर्पयामि (उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करें )
ॐ कबंधाय धूपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए धुप / अगरबत्ती समर्पित करें )
ॐ कबंधाय दीपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए दीपक जलाएं )
ॐ कबंधाय नैवेद्यं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए नैवेद्य { मिठाई / फल /खीर } इत्यादि का भोग लगाएं )
पंचोपचार पूजन के पश्चात कबंध मन्त्र का एक माला जाप करें :-
मन्त्र :- " ॐ कबंधाय नमः "
तत्पश्चात माता की प्रेम और निष्ठापूर्वक पूजा आरम्भ करें :-
स्तुति :-
छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम,
प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम,
पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम,
दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम,
दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम,
अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम,
डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत:
विनियोग :-
ॐ अस्य श्रीछिन्नमस्तामन्त्रस्य भैरवऋषिः सम्राट्छन्दः छिन्नमस्तादेवता हूं हूं बीजं स्वाहाशक्तिरात्मनोऽभीष्टसिद्ध्यर्थं जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यास :-
ॐ भैरवाय ऋषये नमः शिरसि,
ॐ सम्राट्छन्दसे नमः मुखे
छिन्नमस्तादेवतायै नमः हृदि
हूं हूं बीजाय नमः गुह्ये
शक्तये नमः पादयोः
अङ्गन्यास :-
ॐ आं खड्गाय ह्रीं ह्रीं फट् हृदयाय स्वाहा,
ॐ ईं सुखड्गाय ह्रीं ह्रीं फट् शिरसे स्वाहा,
ॐ ऊं वज्राय ह्रीं ह्रीं फट् शिखायै स्वाहा,
ॐ ऐं पाशाय ह्रीं ह्रीं फट् कवचाय स्वाहा,
ॐ औं अंकुशाय ह्रीं ह्रीं फट् नेत्रत्रयाय स्वाहा,
ॐ अः वसुरक्षाय ह्रीं ह्रीं फट् अस्त्राय फट् स्वाहा,
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ध्यान :-
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रक्ताभां रक्तकेशीं करकमललसत्कर्त्रिकां कालकान्तिं
विच्छिन्नात्मीयमुण्डासृगरुणबहुलोदग्रधारां पिबन्तीम् ।
विघ्नाभ्रौघप्रचण्डश्वसनसमनिभां सेवितां सिद्धसङ्घैः
पद्माक्षीं छिन्नमस्तां छलकरदितिजच्छेदिनीं संस्मरामि ॥
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पुष्प समर्पण :-
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ॐ देवेशि भक्ति सुलभे परिवार समन्विते
यावत्तवां पूजयिष्यामि तावद्देवी स्थिरा भव
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नमस्कार:-
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शत्रुनाशकरे देवि ! सर्व पालनकर्त्री ! सर्व सम्पत्करे शुभे
सर्व देवस्तुते ! छिन्नमस्तिके ! त्वां नमाम्यहम
१. आसन :- प्रथम दिन कि पूजा में माँ को लाल रंग के कपडे का / आम कि लकड़ी का सिंहासन जो लाल रंग से रंगा गया हो समर्पित करें एवं माँ को उस पर विराजित करने इसके बाद फिर प्रत्येक दिन माँ के चरणों में निम्न मंत्र को बोलते हुए पुष्प / अक्षत समर्पित करें
ॐ आसनं भास्वरं तुङ्गं मांगल्यं सर्वमंगले
भजस्व जगतां मातः प्रसीद जगदीश्वरी
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा आसनं समर्पयामि )
२. पाद्य :- इस क्रिया में शीतल एवं सुवासित जल से चरण धोएं और ऐसा सोचें कि आपके आवाहन पर माँ दूर से आयी हैं और पाद्य समर्पण से माँ को रास्ते में जो श्रम हुआ लगा है उसे आप दूर कर रहे हैं
ॐ गंगादि सलिलाधारं तीर्थं मंत्राभिमंत्रिम
दूर यात्रा भ्रम हरं पाद्यं तत्प्रति गृह्यतां
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा पाद्यं समर्पयामि )
३. उद्वर्तन :- इस क्रिया में माँ के चरणों में सुगन्धित / तिल के तेल को समर्पित करते हैं
ॐ तिल तण्डुल संयुक्तं कुश पुष्प समन्वितं
सुगंधम फल संयुक्तंमर्ध्य देवी गृहाण में
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा उद्वर्तन तैलं समर्पयामि )
४. आचमन :- इस क्रिया में माँ को आचमनी से या लोटे से आचमन जल प्रदान करते हैं ( याद रहे कि जल समर्पित करने का क्रम आप मूर्ति और यदि जल कि निकासी कि सुगम व्यवस्था है तो कर सकते हैं किन्तु यदि आपने कागज के चित्र को स्थापित किया हुआ है तो चित्र के सम्मुख एक पात्र रख लें और जल से सम्बंधित सारी क्रियाएँ करके जल उसी पात्र में डालते जाएँ )
ॐ स्नानादिक विधायापि यतः शुद्धिख़ाप्यते
इदं आचमनीयं हि छिन्नमस्तिके देवी प्रगृह्यताम्
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा आचमनीयम् समर्पयामि )
५. स्नान :- इस क्रिया में सुगन्धित पदार्थों से निर्मित जल से स्नान करवाएं ( जल में इत्र , कर्पूर , तिल , कुश एवं अन्य वस्तुएं अपनी सामर्थ्य या सुविधानुसार मिश्रित कर लें यदि सामर्थ्य नहीं है तो सदा जल भी पर्याप्त है जो पूर्ण श्रद्धा से समर्पित किया गया हो )
ॐ खमापः पृथिवी चैव ज्योतिषं वायुरेव च
लोक संस्मृति मात्रेण वारिणा स्नापयाम्यहम्
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा स्नानं निवेदयामि )
६. मधुपर्क :- इस क्रिया में ( पंचगव्य मिश्रित करें प्रथम दिन ( गाय का शुद्ध दूध , दही , घी , चीनी , शहद ) अन्य दिनों में यदि व्यवस्था कर सकें तो बेहतर है अन्यथा सिर्फ शहद से काम लिया जा सकता है
ॐ मधुपर्क महादेवि ब्रम्हाद्धे कल्पितं तव
मया निवेदितम् भक्तया गृहाण गिरिपुत्रिके
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा मधुपर्कं समर्पयामि )
विशेष :- ध्यान रखें चन्दन या सिन्दूर में से कोई भी चीज मस्तक पर समर्पित न करें बल्कि माँ के चरणों में समर्पित करें
७. चन्दन :- इस क्रिया में सफ़ेद चन्दन समर्पित करें
ॐ मळयांचल सम्भूतं नाना गंध समन्वितं
शीतलं बहुलामोदम चन्दम गृह्यतामिदं
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा चन्दनं समर्पयामि )
८. रक्त चन्दन :- इस क्रिया में माँ को रक्त / लाल चन्दन समर्पित करें
ॐ रुक्तानुलेपनम् देवि स्वयं देव्या प्रकाशितं
तद गृहाण महाभागे शुभं देहि नमोस्तुते
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा रक्त चन्दनं समर्पयामि )
९. सिन्दूर :- इस क्रिया में माँ को सिन्दूर समर्पित करें
ॐ सिन्दूरं सर्वसाध्वीनाम भूषणाय विनिर्मितम्
गृहाण वर दे देवि भूषणानि प्रयच्छ में
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा सिन्दूरं समर्पयामि )
१०. कुंकुम :- इस क्रिया में माँ को कुंकुम समर्पित करें
ॐ जपापुष्प प्रभम रम्यं नारी भाल विभूषणम्
भाष्वरम कुंकुमं रक्तं देवि दत्तं प्रगृह्य में
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा कुंकुमं समर्पयामि )
११. अक्षत :- अक्षत में चावल प्रयोग करने होते हैं जो लाल रंग में रंगे हुए हों
ॐ अक्षतं धान्यजम देवि ब्रह्मणा निर्मितं पुरा
प्राणंद सर्वभूतानां गृहाण वर दे शुभे
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा अक्षतं समर्पयामि )
१२. पुष्प :- माता के चरणो में पुष्प समर्पित करें ( फूलों एवं फूलमालाओं का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि यदि आपको लाल गुलाब मिल जाये तो बहुत बढ़िया यदि नहीं मिलता तो कोई सा भी गुलाब उपयुक्त होगा किन्तु यदि स्थानीय या बाजारीय उपलब्धता के हिसाब से जो उपलब्ध हो वही प्रयोग करें )
ॐ चलतपरिमलामोदमत्ताली गण संकुलम्
आनंदनंदनोद्भूतम् कालिकायै कुसुमं नमः
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा पुष्पं समर्पयामि )
१३. विल्वपत्र :- माता के चरणों में बिल्वपत्र समर्पित करें ( कहीं कहीं पर उल्लेख मिलता कि देवी पूजा में बिल्वपत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है तो इस स्थिति में आप अपने लोक/ स्थानीय प्रचलन का प्रयोग करें )
ॐ अमृतोद्भवम् श्रीवृक्षं शंकरस्व सदाप्रियम
पवित्रं ते प्रयच्छामि सर्व कार्यार्थ सिद्धये
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा बिल्वपत्रं समर्पयामि )
१४. माला :- इस क्रिया में माँ को फूलों कि माला समर्पित करें
ॐ नाना पुष्प विचित्राढ़यां पुष्प मालां सुशोभिताम्
प्रयच्छामि सदा भद्रे गृहाण परमेश्वरि
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा पुष्पमालां समर्पयामि )
१५. वस्त्र :- इस क्रिया में माता को वस्त्र समर्पित किये जाते हैं ( एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि वस्त्रों कि लम्बाई १२ अंगुल से कम न हो - प्रथम दिन कि पूजा में लाल वस्त्र समर्पित किये जाने चाहिए तत्पश्चात [ मौली धागा जिसे प्रायः पुरोहित रक्षा सूत्र के रूप में यजमान के हाथ में बांधते हैं वह चढ़ाया जा सकता है लेकिन लम्बाई १२ अंगुल ही होगी )
अ. ॐ तंतु संतान संयुक्तं कला कौशल कल्पितं
सर्वांगाभरण श्रेष्ठं वसनं परिधीयताम्
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा प्रथम वस्त्रं समर्पयामि )
ब. ॐ यामाश्रित्य महादेवि पालिन्यै सदा
तस्यै ते परमेशान्यै कल्पयाम्युत्रीयकम
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा द्वितीय वस्त्रं समर्पयामि )
१५. धूप :- इस क्रिया में सुगन्धित धुप समर्पित करनी है
ॐ गुग्गुलम घृत संयुक्तं नाना भक्ष्यैश्च संयुतम
दशांग ग्रसताम धूपम् छिन्ने देवि नमोस्तुते
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा धूपं समर्पयामि )
१६. दीप :- इस क्रिया में शुद्ध घी से निर्मित दीपक समर्पित करना है जो कपास कि रुई से बनी बत्तियों से निर्मित हो
ॐ मार्तण्ड मंडळांतस्थ चन्द्र बिंबाग्नि तेजसाम्
निधानं देवि छिन्ने दीपोअयं निर्मितस्तव भक्तितः
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा दीपं दर्शयामि )
१७. इत्र :- इस क्रिया में माता को इत्र / सुगन्धित सेंट समर्पित करना है
ॐ परमानन्द सौरभ्यम् परिपूर्णं दिगम्बरम्
गृहाण सौरभम् दिव्यं कृपया जगदम्बिके
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि )
१८. कर्पूर दीप :- इस क्रिया में माँ को कर्पूर का दीपक जलाकर समर्पित करना है
ॐ त्वम् चन्द्र सूर्य ज्योतिषं विद्युद्गन्योस्तथैव च
त्वमेव जगतां ज्योतिदीपोअयं प्रतिगृह्यताम्
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा कर्पूर दीपम दर्शयामि )
१९. नैवेद्य :- इस क्रिया में माता को फल - फूल या भोजन समर्पित करते हैं भोजन कम से कम इतनी मात्रा में हो जो एक आदमी के खाने के लिए पर्याप्त हो बाकि सारा कुछ सामर्थ्यानुसार )
ॐ दिव्यांन्नरस संयुक्तं नानाभक्षैश्च संयुतम
चौष्यपेय समायुक्तमन्नं देवि गृहाण में
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा नैवेद्यं समर्पयामि )
२०. खीर :- इस क्रिया में ढूध से निर्मित खीर चढ़ाएं
ॐ गव्यसर्पि पयोयुक्तम नाना मधुर मिश्रितम्
निवेदितम् मया भक्त्या परमान्नं प्रगृह्यताम्
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा दुग्ध खीरम समर्पयामि )
२१. मोदक :- इस क्रिया में माँ को लड्डू समर्पित करने हैं
ॐ मोदकं स्वादु रुचिरं करपुरादिभिरणवितं
मिश्र नानाविधैर्द्रुव्यै प्रति ग्रह्यशु भुज्यतां
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा मोदकं समर्पयामि )
२२. फल :- इस क्रिया में माता को ऋतु फल समर्पित करने होते हैं
ॐ फल मूलानि सर्वाणि ग्राम्यांअरण्यानि यानि च
नानाविधि सुंगंधीनि गृहाण देवि ममाचिरम
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा ऋतुफलं समर्पयामि )
२३. जल :- इस क्रिया में खान - पान के पश्चात् अब माता को जल समर्पित करें
ॐ पानीयं शीतलं स्वच्छं कर्पूरादि सुवासितम्
भोजने तृप्ति कृद्य्स्मात कृपया प्रतिगृह्यतां
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा जलम समर्पयामि )
२४. करोद्वर्तन जल :- इस क्रिया में माता को हाथ धोने के लिए जल प्रदान करें
ॐ कर्पूरादीनिद्रव्याणि सुगन्धीनि महेश्वरि
गृहाण जगतां नाथे करोद्वर्तन हेतवे
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा करोद्वर्तन जलम समर्पयामि )
२५. आचमन :- इस क्रिया में माता को पुनः आचमन करवाएं
ॐ अमोदवस्तु सुरभिकृतमेत्तदनुत्तमम्
गृह्णाचमनीयम तवं माया भक्त्या निवेदितम्
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा पुनराचमनीयम् समर्पयामि )
२६. ताम्बूल :- इस क्रिया में माता को सुगन्धित पान समर्पित करें
ॐ पुन्गीफलम महादिव्यम नागवल्ली दलैर्युतम्
कर्पूरैल्लास समायुक्तं ताम्बूल प्रतिगृह्यताम्
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा ताम्बूलं समर्पयामि )
२७. काजल :- माता को काजल समर्पित करें
ॐ स्निग्धमुष्णम हृद्यतमं दृशां शोभाकरम तव
गृहीत्वा कज्जलं सद्यो नेत्रान्यांजय कालिके
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा कज्जलं समर्पयामि )
२८. महावर :- इस क्रिया में माँ को लाला रंग का महावर समर्पित करते हैं ( लाल रंग एवं पानी का मिश्रण जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पैरों में लगाती हैं )
ॐ चलतपदाम्भोजनस्वर द्युतिकारि मनोहरम
अलकत्कमिदं देवि मया दत्तं प्रगृह्यताम्
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा महावरम समर्पयामि )
२९. चामर :- इस क्रिया में माँ को चामर / पंखा ढलना होता है
ॐ चामरं चमरी पुच्छं हेमदण्ड समन्वितम्
मायार्पितं राजचिन्ह चामरं प्रतिगृह्यताम्
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा चामरं समर्पयामि )
३० . घंटा वाद्यम् :- इस क्रिया में माँ के सामने घंटा / घंटी बजानी होती है ( यह ध्वनि आपके घर और आपसे सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर करती है एवं आपके मन में प्रसन्नता और हर्ष को जन्म देती है )
ॐ यथा भीषयसे दैत्यान् यथा पूरयसेअसुरम
तां घंटा सम्प्रयच्छामि महिषधिनी प्रसीद में
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा घंटा वाद्यं समर्पयामि )
३१. दक्षिणा :- इस क्रिया में माँ को दक्षिणा धन समर्पित किया जाता है - ( जो कि सामर्थ्यानुसार है )
ॐ काञ्चनं रजतोपेतं नानारत्न समन्वितं
दक्षिणार्थम् च देवेशि गृहाण त्वं नमोस्तुते
( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा दक्षिणां समर्पयामि )
३३. पुष्पांजलि :-
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा
परमेश्वरि पुष्पांजलिं समर्पयामि
३४. नीराजन :- इस क्रिया में पुनः माँ कि प्राथमिक आरती उतारते हैं जिसमे सिर्फ कर्पूर का प्रयोग होता है
ॐ कर्पूरवर्ति संयुक्तं वह्नि दीपितंचयत
नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके
३५. क्षमा प्रार्थना :-
ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित स्खलितम् मम
क्षम्यतां तज्जगन्मातः छिन्ने देवी नमोस्तुते
ॐ विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं यदरचितम्
पुर्णम्भवतु तत्सर्वं त्वप्रसादान्महेश्वरी
शक्नुवन्ति न ते पूजां कर्तुं ब्रह्मदयः सुराः
अहं किं वा करिष्यामि मृत्युर्धर्मा नरोअल्पधिः
न जाने अहं स्वरुप ते न शरीरं न वा गुणान्
एकामेव ही जानामि भक्तिं त्वचर्णाबजयोः
३६. आरती :- इस क्रिया में माता कि आरती उतारते हैं और यह चरण आपकी उस काल कि साधना के समापन का प्रतीक है -( इसके लिए अलग से कोई आरती जलने कि कोई जरुरत नहीं है आप उसी दीपक का उपयोग करेंगे जो आपने पूजा के प्रारम्भ में घी का दीपक जलाया था )
माता महाकाली शरणम्
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