Monday, October 5, 2015

संकट मोचन स्तोत्र - Sankat Mochan Stotra


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।। **संकट मोचन स्तोत्र **।।
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किसी भी प्रकार के संकट से पीडि़त व्यक्ति को नित्यप्रति इस संकटमोचन का पाठ संकट से मुक्त कर उसे सुख और शान्ति प्रदान करता है। संकटमोचन भगवान मारुति सर्व संकटहारी हैं। उनमें पूर्ण आस्था रखते हुए इसका पाठ करना चाहिए।

बाल समय रवि भक्ष लियो तब। तीनहुं लोक भयो अंधियारो।।
ताहि सो त्रास भयो जगको। यह संकट काहु सो जात न टारो।।
देवन आनि करी बिनती तब। छांडि़ दियो रवि कष्ट निवारो।।
को नहिं जानत है जग में। कपि संकटमोचन नाम तिहारो।। 1।।



बालि की त्रास कपीस बसै। गिरि जात महा प्रभु पंथ निहारो।।
चूंकि महा मुनि श्राप दियो। तब चाहिय कौन बिचार बिचारो।।

कै द्विजरूप लिवाय महाप्रभु। सो तुम दास के शोक निवारो।। 
को नहिं जानत है जग में। कपि संकटमोचन नाम तिहारो।। 2।।


अंगद के संग लेन गये सिय। खोज कपीश यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौं हमसों जु। बिना सुधि लाए इहां पगु धारो।।
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब। लाय सिया सुधि प्राण उबारो।। 
को नहिं जानत है जग में। कपि संकटमोचन नाम तिहारो।। 3।।

रावण त्रास दई सिय को तब। राक्षसि सोकहि शोक निवारो।।
ताहि समय हनुमान महा प्रभु। जाय महा रजनीचर मारो।।
चाहत सीय अशोक सो आगिसु। दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो।। 
को नहिं जानत है जग में। कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।4।।


बाण लग्यो उर लक्ष्मण के तब। प्राण तजो सुत रावण मारो।।
लै गृह बैद्य सुखेन समेत। तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो।।

लाय संजीवन हाथ दई तब। लक्ष्मण के तुम प्राण उबारो।। 
को नहिं जानत है जग में। कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।5।।


रावण युद्ध अजान कियो तब। नाग कि फाँस सबै सिर डारो।।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल। मोह भयो यह संकट भारो।।

आनि खगेस तबै हनुमान जु। बन्धन काटि सुत्रास निवारो।। 
को नहिं जानत है जग में। कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।6।।

बन्धु समेत जबै अहिरावण। लै रघुनाथ पताल सिधारो।।
देबिहि पूजि भली बिधि सौ बलि। देउ सबै मिलि मंत्र विचारो।।
जाय सहाय भयो तबहीं। अहिरावण सैन्य समेत संहारो।। 
को नहिं जानत है जग में। कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।7।।

काज कियो बड़ देवन के तुम। वीर महाप्रभु देखि बिचारो।।
कौन सो संकट मोर गरीब को। जो तुमसो नहिं जात है टारो।।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु। जो कछु संकट होय हमारो।। 
को नहिं जानत है जग में। कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।8।।

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्रदेह दानव दलन, जय जय जय कपिशूर ।।


माता महाकाली शरणम् 

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