।। अथ श्री हनुमत साठिका ।।
।। चौपाईयाँ ।।
- जय जय जय हनुमान अड़न्गी । महावीर विक्रम बजरंगी ।।
- जय कपीश जय पवन कुमारा । जय जय वंदन शील अगारा ।।
- जय आदित्य अमर अविकारी । अरि मरदन जय जय गिरधारी ।।
- अंजनी उदर जन्म तुम लीन्हो । जय जय कार देवतन कीन्हो ।।
- बाजै दुंदिभी गगन गंभीरा । सुर मन हरष असुर मन पीरा ।।
- कपि के डर गढ़ लंक समानी । छूटि बंदि देव तन जानी ।।
- ऋषी समूह निकट चलि आये । पवन तनय के पद सिर नाए ।।
- बार बार स्तुति कर नाना । निर्मल नाम धरा हनुमाना ।।
- सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना । दीन बताये लाल फल खाना ।।
- सुनत वचन कपि मन हर्षाना । रवि रथ उदय लाल फल जाना ।।
- रथ समेत कपि कीन्ह अहारा । सूर्य बिना भयो अति अँधियारा ।।
- विनय तुम्हार करैं अकुलाना । तब कपीश की स्तुति ठाना ।।
- सकल लोक वृतांत सुनावा । चतुरानन तब रवि उगिलावा ।।
- कहा बहोरि सुनहु बलशीला । रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ।।
- तब तुम उनकर करब सहाई । अबहि बसहु कानन में जाई । ।
- असि कहि विधि निज लोक सिधारे । मिले सखा संग पवन कुमारे ।।
- खेलें खेल महा तरु तोड़ें । ढेर करें बहु पर्वत फौड़ें ।।
- जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई । गिरि समेत पातालाहिं जाई ।।
- कपि सुग्रीव बाली की त्रासा । निरखत रहे राम मगु आशा ।।
- मिले राम तँह पवन कुमारा । अति आनंद सप्रेम दुलारा ।।
- मणि मुंदरी रघुपति सो पाई । सिया खोज ले चलि सिर नाई ।।
- सत जोजन जल निधि विस्तारा । अगर अपार देवतन हारा ।।
- जिमि सर गोखुर सरिस कपीशा । लाँघि गए कपि कहि जगदीशा ।।
- सीता चरण शीश तुम नाए । अजर अमर के आशिष पाए ।।
- रहे दनुज उपवन रखवारी । एक से एक महाभट भारी ।।
- तिन्हे मारि पुनि कहेउ कपीसा । दहेऊ लंक कोप्यो भुज बीसा ।।
- सिया बोध दै पुनि फिर आये । रामचंद्र के पाद सिर नाए ।।
- मेरु उपार आप छिन माहीं । बांध्यो सेतु निमिष एक मांही ।।
- लक्ष्मण शक्ति लागी जबहीं । राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ।।
- भवन समेत सुषेण को लाये । तुरत संजीवन को पुनि धाये ।।
- मग मँह कालनेमि को मारा । अमिट सुभट निशचर संहारा ।।
- आनि संजीवन गिरि समेता । धरि दीन्हो जंह कृपानिकेता ।।
- फनपति केर शोक हरि लीन्हा । हरषि सुरन सुर जय जय कीन्हा ।।
- अहिरावन हरि अनुज समेता । लै गयो तहाँ पाताल निकेता ।।
- जहां रहे देवी अस्थाना । दीन चहै बलि काढि कृपाना ।।
- पवन तनय प्रभु कीन गुहारी । कटक समेत निशाचर मारी ।।
- रीछ कीशपति सबै बहोरी । राम लखन कीने एक ठौरी ।।
- सब देवतन की बंदि छूडाये। सो कीरति नारद मुनि गाये ।।
- अक्षय कुमार को मार संहारा । लूम लपेटी लंक को जारा ।।
- कुम्भकरण रावण को भाई । ताहि निपाति कीन्ह कपिराई ।।
- मेघनाद पर शक्ति मारा । पवन तनय सब सो बरियारा ।।
- तंहा रहे नारान्तक जाना । पल में हते ताहि हनुमाना ।।
- जंह लगि मान दनुज कर पावा । पवन तनय सब मारि नसावा ।।
- जय मारुत सूत जय अनुकूला । नाम कृशानु शोक सम तूला ।।
- जंह जीवन पर संकट होई । रवि तम सम सो संकट खोई ।।
- बंदी परै सुमरि हनुमाना । संकट कटे धरे जो ध्याना ।।
- यम को बांधि वाम पाद लीन्हा । मारुतसुत व्याकुल सब कीन्हा ।।
- सो भुज बल को दीन्ह कृपाला । तुम्हरे होत मोर यह हाला ।।
- आरत हरण नाम हनुमाना । सादर सुरपति कीन्ह बखाना ।।
- संकट रहे न एक रती को । ध्यान धरे हनुमान जती को ।।
- धावहु देख दीनता मोरी । कहौ पवनसुत युग कर जोरी ।।
- कपिपति बेगि अनुग्रह करहूँ । आतुर आय दुसह दुःख हरहूँ ।।
- राम सपथ मैं तुमहि सुनावा । जवन गुहार लाग सिय जावा ।।
- शक्ति तुम्हार सकल जग जाना । भव बंधन भंजन हनुमाना ।।
- यह बंधन कर केतिक बाता । नाम तुम्हार जगत सुख दाता ।।
- करौ कृपा जय जय जग स्वामी । बारि अनेक नमामि नमामी ।।
- भौमवार करि होम विधाना । धूप दीप नैवेद्य सुजाना ।।
- मंगल दायक को लौ लावे । सुर नर मुनि वांछित फल पावै ।।
- जयति जयति जय जय जग स्वामी । समरथ पुरुष सुअंतर जामी ।।
- अंजनि तनय नाम हनुमाना । सो तुलसी के प्राण समाना ।।
।। दोहा ।।
जय कपीश सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ।
रामलखन सीता सहित, सदा करौ कल्यान ॥
बन्दौ हनुमत नाम यह, मंगलवार प्रमाण ।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥
जो नित पढै यह साठिका, तुलसी कहै विचारि ।
रहै न संकट ताहि को , साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥
।। सवैया ।।
आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ।।
जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ।।
जय कपीश सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ।
रामलखन सीता सहित, सदा करौ कल्यान ॥
बन्दौ हनुमत नाम यह, मंगलवार प्रमाण ।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥
जो नित पढै यह साठिका, तुलसी कहै विचारि ।
रहै न संकट ताहि को , साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥
।। सवैया ।।
आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ।।
जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ।।
माता महाकाली शरणम्
No comments:
Post a Comment