Friday, May 23, 2014

Mata Hingulaj Shodsopchar Pujan - माता हिंगुलाज षोडशोपचार पूजन - Hinglaj Pujan - Hinglaj Mandir Pakistan

माता हिंगुलाज साधना



माता हिंगुलाज का उद्भव दक्ष यज्ञ के समय जब माता सती ने आत्मदाह कर लिया एवं इसके पश्चात् भगवन शिव माता के मृत शरीर को लेकर ब्रह्माण्ड के चक्कर काटने लगे - ब्रह्माण्ड का संतुलन डगमगाने लगा उस समय सभी देवताओं की प्रार्थना के फलस्वरूप भगवान् विष्णु ने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया कि सती के मृत शरीर कि छिन्न - भिन्न कर दो उस समय सुदर्शन चक्र ने सती के अंगो को काटना प्रारम्भ किया और इस क्रम में माता के ब्रह्मरंध्र का हिस्सा जहाँ पर गिरा वहाँ एक शक्तिपीठ का अस्तित्व बना जिसे ( हिंगुल / हिंगुलाज ) शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है -!

यह शक्ति पीठ भारत से बाहर पाकिस्तान में अवस्थित है ( कराची शहर से १२५ किलोमीटर उत्तर पूर्व बलूचिस्तान क्षेत्र में ) यहाँ कि अधिष्ठात्री शक्ति कोट्टरी और भैरव भीमलोचन के नाम से जाने जाते हैं -!

आने वाले नवरात्रों और माता हिंगुलाज के भक्तों कि मांग पर मैं माता हिंगुलाज कि पूजा विधि का वर्णन करने जा रहा हूँ जिसका आधार वैदिक और षोडशोपचार पूजन है - किन्तु किसी भी पूजन में सामर्थ्य बहुत महत्व रखती है इसलिए जो भी भक्त इस विस्तृत पूजन का विधान न कर सकें उनके लिए पंचोपचार पूजन का विधान भी उनता ही महत्व रखता है और बराबर फल ही मिलता है -!

लेकिन आलस्य और प्रमाद कि वजह से यदि विधान को छोटा करने कि कोशिश कि जाती है तो उसका परिणाम भी उसी तरह छोटा होता है - इसलिए मैं अपने सभी विधानों में एक ही बात मुख्य रूप से सम्मिलित करता हूँ कि यदि सम्भव है और आपकी सामर्थ्य है तो वैदिक विधान का ही पालन करें यदि आपके पास सामर्थ्य नहीं है तो लघु विधान का पालन करें - इसके अतिरिक्त यदि मेरे लिखे हुए विधान और आपके पारम्परिक विधान में कोई विषमता है तो आप अपने पारम्परिक / लोक विधान का पालन करें :-!


माता को लाल रंग एवं गुलाब का इत्र बहुत पसंद है

माता कि पूजा कई उपचारों से कि जाती है जिसमे कि :-

१. पंचोपचार :-
अ. गंध
ब. पुष्प
स. धूप
द. दीप
य. नैवेद्य

२. दशोपचार :-
1. पाद्य
2. अर्घ्य
3. आचमन
4. मधुपर्क
5. पुनराचमन
6. गन्ध
7. पुष्प
8. धूप
9. दीप
10. नैवेद्य

३. षोडशोपचार :- षोडशोपचार के मामले में कभी भी एक सामान क्रम और समान चरण नहीं मिलते हैं क्योंकि साधक के पास उपलब्ध साधनों और श्रद्धा तथा पूजा के प्रकार के आधार पर इनके क्रम और संख्या में परिवर्तन हो जाते हैं अतएव इस सम्बन्ध में भ्रमित न हों और अपनी सामर्थ्यानुसार चरणों का अनुसरण करें ( जहाँ पर संख्या बढ़ जाती है वहाँ वास्तव में मूल चरण के उप चरण जुड़ जाते हैं या जोड़ दिए जाते हैं जैसे कि उदाहरणार्थ - मधुपर्क = दूध , दही , शक्कर / चीनी , घी , शहद - अब यहाँ पर यदि देखा जाये तो मधुपर्क के पांच उप चरण बन गए )

प्रथम पूजन खंड

आवाहन

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय आगच्छय आगच्छय ::

आसन

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय आसनं समर्पयामि ::

पाद्य

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय पाद्यं समर्पयामि ::
अर्घ्य

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय अर्घ्यं समर्पयामि ::
आचमन

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय आचमनीयं निवेदयामि ::
मधुपर्क

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय मधुपर्कं समर्पयामि ::
आचमन

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय पुनराचमनीयम् निवेदयामि ::
स्नान

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय स्नानं निवेदयामि ::
वस्त्र

1. ::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय प्रथम वस्त्रं समर्पयामि ::



2. ::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय द्वितीय वस्त्रं समर्पयामि ::
आभूषण

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय आभूषणं समर्पयामि ::
सिन्दूर

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय सिन्दूरं समर्पयामि ::

कुंकुम

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय कुंकुमं समर्पयामि ::
गन्ध / इत्र

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि ::
पुष्प

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय पुष्पं समर्पयामि ::
धूप / अगरबत्ती

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय धूपं समर्पयामि ::
दीप

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय दीपं दर्शयामि ::
नैवेद्य

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय नैवेद्यं समर्पयामि ::

प्रणामाज्जलि / पुष्पांजलि

:: ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय नमः स्वाहा
ब्रह्मरन्ध्रं हिंगुलायाम् भैरवः भीमलोचनः
कोट्टरी सा महामाया त्रिगुणा या दिगम्बरी ::
पुष्पांजलिं समर्पयामि
नीराजन
::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय नीराजनं समर्पयामि ::
दक्षिणा
::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय दक्षिणां समर्पयामि ::
अपराधा क्षमा याचना
अपराधसहस्राणि क्रियंतेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥१॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥२॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥३॥
अपराधशतं कृत्वा जगदंबेति चोचरेत् ।
यां गर्ति समबाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ॥४॥
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदंबिके ।
ड्रदानीमनुकंप्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ॥५॥
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् क।
तत्सर्व क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥६॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानंदविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ॥७॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि ॥८॥




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