Monday, November 14, 2016

सियार सिंघी / गीदड़ सिंघी - Jackal's Horn / Siyar Singhi / Gidar Singhi

सियार सिंघी


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सियार सिंगी बहुत ही चमत्कारी वस्तु होती है , इसे घर में रखने से सकारात्मक उर्जा का अनुभव होता है ! सियार सिंगी बालो के एक गुच्छे कि तरह होती है ! असल में सियार के सींग नहीं होते परन्तु कुछ सियारों के नाक के ऊपर बालो का एक गुच्छा बन जाता है , धीरे धीरे वह कड़ा और बड़ा हो जाता है और सींग जैसा बन जाता है इसे सियार सिगी कहते है और यह हजारों में से किसी एक के नाक पर होता है ! इसमें वशीकरण की अद्भुत शक्ति होती है , यदि इसे सिद्ध कर लिया जाए तो यह शक्ति हजारों गुना बढ़ जाती है ! इसके द्वारा आप किसी से भी अपना मनोवांछित काम करवा सकते है ! इसे सिद्ध करने की अनेकों विधियाँ है - पर यदि इसे होली या दीपावली के दिन निम्न विधि से सिद्ध किया जाए तो इसका चमत्कार बड़ी जल्दी नज़र आता है !

आपके सबके लिए एक आसान और प्रमाणिक विधि जो बहुत प्रयासों के बाद मिल सकी है उसका उल्लेख मैं यहाँ कर रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ कि यह आप लोगों के लिए उपयोगी होगी और माता महाकाली कि कृपा से आप लोग इसका लाभ ले पाएंगे ! यह विधि दीपावली से दस दिन पहले शुरू की जाती है मतलब दसवां दिन दीपावली होना चाहिये !

|| मन्त्र ||


ॐ चामुण्डाये नमः

|| विधि ||

  1. दीपावली से दस दिन पहले एक सियार सिंगी का एक जोड़ा लें 
  2. उसे लाल कपडे पर स्थापित करे 
  3. लाल आसन बिछा कर लाल वस्त्र धारण कर बैठ जाएँ
  4. सरसों के तेल का दीपक जलाएँ 
  5. सियार सिंगी पर गंगा जल छिड़कें 
  6. चावल चढ़ाएँ
  7. पांच लौंग साबुत और पांच चोटी इलायची चढ़ाये

उपरोक्त मंत्र २१०० बार जप करे ! जप समाप्ति के बाद अग्नि में २१ आहुति गुग्गल की दे ! ऐसा रोज दीपावली तक करे।

दीपावली वाली रात पूजा के बाद इस नीचे लिखे मन्त्र का सियार सिंगी के सामने ११०० बार जाप करे।

दीपावली वाली रात पूजा के बाद इस नीचे लिखे मन्त्र का सियार सिंगी के सामने ११०० बार जाप करे।

|| मंत्र ||


रंगली पीढ़ी रंगले पावे

जित्थे पुकारा ओथे आवे

नाले अंग नाल अंग मिलावे

नाले घर दा घर खिलावे ।।


इस मन्त्र को जपने के बाद सियार सिंगी को किसी चांदी या ताम्बे की डिब्बी में मीठा सिन्दूर डाल कर उसमें पांच लौंग पांच इलायची और एक कपूर का छोटा सा टुकड़ा डाल कर रख ले !

|| प्रयोग विधि ||

जब किसी पर प्रयोग करना हो तो इस डिब्बी को खोल कर सियार सिंगी के सामने दोनों मन्त्रों का एक एक माला जाप करे और उस व्यक्ति का नाम बोल कर चामुंडा मां से उसे अपने अनुकूल करने की प्रार्थना करे और डब्बी को अपनी जेब में रखकर चले जाएँ - आपका कार्य सिद्ध हो जायेगा।





माता महाकाली शरणम् 

Sunday, November 13, 2016

हत्था जोड़ी / हाथाजोड़ी - Hatha Jodi / Hattha Jodi

हत्था जोड़ी

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हत्था जोड़ी एक प्राकृतिक वनस्पति है जो कि मध्य प्रदेश के कुछ भागों में स्वतः उत्पन्न होती है - वस्तुतः यह उस वनस्पति कि जड़ होती है जिसका आकार मानव हाथ के पंजो जैसा होता है - और देखने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि कोई मानव हाथ मुट्ठी बांधे हुए हो।


मध्य प्रदेश कि वनवासी जातियां अक्सर इसे बेचती हुयी दिख जाती हैं - हत्था जोड़ी बहुत ही शक्तिशाली व प्रभावकारी वस्तु है यह :- 

मुकदमा, शत्रु संघर्ष, दरिद्रता आदि के निवारण में बहुत प्रभावी है इसके जैसी चमत्कारी वस्तु आज तक देखने में नही आई।

इसमें वशीकरण को भी अदुभूत शक्ति है।

भूत - प्रेत आदि का भय नही रहता यदि इसे तांत्रिक विधि से सिध्द कर दिया जाए तो साधक निष्चित रूप से चामुण्डा देवी का कृपा पात्र हो जाता है यह जिसके पास होती है उसे हर कार्य में सफलता मिलती है धन संपत्ति देने वाली यह बहुत चमत्कारी साबित हुई है तांत्रिक वस्तुओं में यह महत्वपूर्ण है।

हत्था जोड़ी में अद्भुत प्रभाव निहित रहता है, यह साक्षात चामुंडा देवी का प्रतिरूप है।

यह जिसके पास भी होगी वह अद्भुत रुप से प्रभावशाली होगा।

सम्मोहन, वशीकरण, अनुकूलन, सुरक्षा में अत्यंत गुणकारी होता है, हत्था जोड़ी। 

हमारे तंत्र शास्त्र तथा तन्त्र का प्रयोग करने वालो के लिये एक महत्वपूर्ण वनौषधि के नाम से जानी जाती है।

इसके पत्ते हरे रंग के होते है साथ ही यह भी देखा जाता है इन पत्तो के नीचे के हिस्से मे सफ़ेद रंग की परत होती है और इस सफ़ेद हिस्से पर बाल जैसे मुलायम रोंये होते है।

इसके ऊपर गुलाब की तरह का फ़ूल आता है कही कही पर फ़ूल मे नीला रंग भी दिखाई देता है।

यह प्राय: पंसारियो के पास या राशि रत्न बेचने वालो के पास से प्राप्त कि जा सकती है इसे तांत्रिक सामान बेचने वाले भी अपने पास रखते है। 

  • हत्थाजोडी को कर जोडी हस्ताजूडी के नाम से भी जाना जाता है 
  • उर्दू मे इसे’बखूर इ मरियम’ कहा जाता है 
  • ईरान मे इसे चबुक उशनान के नाम से जाना जाता है 
  • लैटिन मे इसे सायक्लेमेन परसीकम कहा जाता है।

इसकी उपज किसी भी पेड की छाया मे तथा नम जमीन मे होती है इसकी जड गोल होती है और रंग काला होता है इसी जड मे हत्था जोडी बनती है।

यदि आप खूब मेहनत और लगन से काम करके धनोपार्जन करते हैं फिर भी आपको आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो आपको अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए इससे सम्बंधित उपाय करने चाहिए।

इसके लिए किसी भी शनिवार अथवा मंगलवार के दिन हत्था जोड़ी घर लाएं। इसे लाल रंग के कपड़े में बांधकर घर में किसी सुरक्षित स्थान में अथवा तिजोरी में रख दें। इससे आय में वृद्घि होगी एवं धन का व्यय कम होगा।

तिजोरी में सिन्दूर युक्त हत्था जोड़ी रखने से आर्थिक लाभ में वृद्धि होने लगती है.


हत्था जोड़ी के कुछ प्रयोग :-


१. प्रसव की सुगमता के लिये ग्रामीण इलाको मे इसे चन्दन के साथ घिस कर प्रसूता की नाभि पर चुपड देते है इससे बच्चा आराम से हो जाता है।

२. गर्भपात करवाने के लिये भी इसे प्रयोग मे लाया जाता है लेकिन इसके आगे के लक्षण बहुत खराब होते है जैसे हिस्टीरिया का मरीज हो जाना

३. जब कभी पेशाब रुक जाती है तो इसे पानी के साथ घिसकर पेडू पर लगाने से पेशाब खुल जाता है.

४. पेट मे कब्ज रहने पर इसको पानी के साथ घिस कर पेट पर चुपडने से कब्जी दूर होने लगती है.

५. मासिक धर्म के लिये इसके चूर्ण की पोटली बनाकर योनि मे रखने से शुद्ध और साफ़ मासिक धर्म होने लगता है लेकिन इस कार्य के लिये किसी योग्य डाक्टर या वैद्य की सहायता लेनी जरूरी होती है.

६. हत्थाजोडी का चूर्ण पीलिया के बहुत उपयोगी है पीलिया के मरीज को हत्थाजोडी के चूर्ण को शहद के साथ चटाने से लाभ मिलता है - लेकिन इसका चूर्ण शहद के साथ खिलाने के बाद रोगी को कपडा ओढ़ा देना जरूरी होता है जिससे पीलिया का पानी पसीने के रूप में निकलने लगेगा - कुछ समय बाद पसीने को तौलिया से साफ़ कर लेना चाहिये इससे यह समूल रोग नष्ट करने मे सहायक होती है.

७. पारा शोधन कि प्रक्रिया में भी हत्थाजोडी को प्रयोग मे लाते है - हत्थाजोडी के चूर्ण को पारे के साथ खरल करते है धीरे धीरे पारा बंधने लगता है - मनचाही शक्ल मे पारे को बनाकर गलगल नीबू के रस मे रख दिया जाता है कुछ समय मे पारा कठोर हो जाता है लेकिन पारा और हत्था जोडी असली हो तभी यह सम्भव है अन्यथा कुछ हासिल नहीं होता -!

८. हत्थाजोडी को सिन्दूर मे लगाकर दाहिनी भुजा मे बांधने से कहा जाता है कि वशीकरण होता है।

९. बिल्ली की आंवर / जेर हत्थाजोडी और सियारसिंगी को सिन्दूर मे मिलाकर एक साथ रखने से कहा जाता है कि भाग्य मे उन्नति होती है।

१०. यदि बच्चा रोता अधिक है और जल्दी-जल्दी बीमार हो जाता है तो शाम के समय, हत्थाजोडी के साथ रखे लौंग-इलायची को लेकर धूप देना चाहिए। स्वाहा।

११.यह क्रिया शनिवार के दिन अधिक लाभकारी होती है।

१२. किसी भी व्यक्ति से वार्ता करने में साथ रखे तो वो बात मानेगा.

 १३. जिसको भी वश में करना हो, उसका नाम लेकर जाप करें तो इसके प्रभाव से वह व्यक्ति वशीभूत होगा.

१४. त्रि - धातु के तावीज में गले में धारण करने से बलशाली से बलशाली व्यक्ति भी डरता है. सभी कार्यों में निरंतर निर्भय होता है।

१५. प्रयोग के बाद चांदी की डिबिया में सिन्दूर के साथ ही तिजोरी में रख दें।

हत्थाजोडी को सिद्ध करने के तरीके :-

1:- क्क हत्थाजोडी मम् सर्व कार्य सिद्ध कुरू-कुरू स्वाहाः। 

:- मंत्र से पीपल के पते पर अपना नाम लिखकर हत्थाजोड़ी को पत्ते पर रखें। रुद्राक्ष - माला से रोजाना तीन माला पांच दिन तक जाप करें। इसे सिद्ध-अभिमंत्रित होने पर पूजा-स्थल पर रखें। साधक के सभी कार्य करने हेतु जागृत हो जाती है।

२. ॐ ऐं हीं क्ली चामुण्डायै विच्चे


मंत्र जप संख्या २१००० + २१०० मन्त्रों से हवन + २१० मन्त्रों से तर्पण + २१ मन्त्रों से मार्जन


यदि हवन करना किसी वजह से सम्भव न हो तो उतनी संख्या में जप किया जा सकता है लेकिन यदि सम्भव हो तो हवन करना ही ज्यादा उपयोगी होगा

:- इस मंत्र द्वारा सिद्ध की गई हाथाजोडी जीवन के विभिन्न क्षेत्रो में साधक को सफलता प्रदान करती है। जिस घर में विधिवत सिद्ध की गई असली हाथाजोडी की पूजा होती है, वह साघक सभी प्रकार से सुरक्षित और श्री सम्पन्न रहता है।

रवि पुष्य नक्षत्र में पंचामृत से स्नान कराकर विधिवत पूजन कर निम्नलिखित मंत्र का १२५०० जप कर के इसको सिद्ध कर लें. रक्त आसन उत्तरभिमुख बैठ कर लाल चन्दन की माला से जप करें.

३. हाथा जोड़ी बहु महिमा धारी कामण गारी, खरी पीयारी.
राजा प्रजा मोहन गारी, सेवत फल, नर नारी,
केशर कपूर से मैं करी पूजा, दुश्मन के बल को तुं भुजा,
मन इछंत मांगूं ते देवे-कहण कथन मेरा ही रवे,
जोड़ी मात दुहाई रख जे मेरी बात सवाई,
मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र इश्वारोवाचा।
 


विधि :- रवि पुष्य नक्षत्र में पंचामृत से स्नान कराकर विधिवत पूजन कर उपरोक्त मंत्र का १२५०० जप कर के इसको सिद्ध कर लें।

  1. रक्त आसन उत्तरभिमुख बैठ कर लाल चन्दन की माला से जप करें। 
  2. लाल फूल चढाएं। 
  3. लाल वस्त्र पहने। 
  4. सामने चक्रेश्वरी व भैरव की मूर्ती या चित्र स्थापन करें. व उनकी पूजा करें। 
  5. भैरव की पूजा तेल और सिन्दूर व लाल फूल से करनी है। 
  6. चक्रेश्वरी की अष्ट प्रकार से पूजा करनी है। 
ऋद्धि : ऊं ह्रीं अर्हं णमों सव्वोसवाण। 

मन्त्र :-  ऊं नमो नामिऊण विसहर विस प्रणाशन रोग शोक दोष ग्रह कप्प्दुमच्चा यई सुहनाम गहण सकल सुह दे ऊं नमः स्वाहा।

(उपरोक्त तीसरे क्रम के मंत्र के अतिरिक्त ऊपर दिए गए ऋद्धि और मंत्र से भी पूजा करें. इस प्रकार साधना करने के पश्चात एक चांदी की डिबिया में शुद्ध सिन्दूर के साथ कृष्णपक्ष के पहले दिन ही सुबह इसको उल्टा करके (यानि पंजे नीचे की तरफ ) रख दें. फिर शुक्लपक्ष के पहले दिन सुबह सीधा करके (यानी पंजे ऊपर) रख दें. इस तरह तीन कृष्णपक्ष व तीन ही शुक्लपक्ष उल्टा सीधा करके रखते रहें. आखिर के शुक्लपक्ष में वो उल्टा ही रहेगा फिर हमेशा के लिये उसे उल्टा ही रखना है. उस चांदी की डिबिया को अपनी तिजोरी में रख दें. परन्तु कभी भी कोई औरत उस डिबिया को भूल से भी खोल कर न देखे. नहीं तो प्रभाव समाप्त हो जायेगा. यह बहुत ही सुंदर लक्ष्मी वर्धक प्रयोग है)

होली, दीपावली एवं नवरात्र को मंत्र जाप से ये प्रयोग ज्यादा शक्ति एवं प्रभाव देते हैं।

हत्था जोड़ी को स्टील की डिब्बी में लौंग, इलायची व सिन्दूर के साथ ही रखना चाहिए।

हालाँकि हत्था जोड़ी बहुत ही सस्ती वनौषधि है किन्तु प्रायः यह ईरान से भारत मंगाने पर खर्चा अधिक और मंगाने पर प्रतिबन्ध होने कि वजह से लोग दाब घास की जड को कृत्रिम रूप से हत्थाजोडी का रूप देकर सिन्दूर मे लगाकर बेचते है।

कुछ लोग मरे हुये चूजों के पंजो को भी मोड कर सिन्दूर आदि मे लगाकर बेचते हैं।

अतः निश्चित सफलता और उचित परिणाम के लिए विश्वशनीय व्यक्ति या प्रतिष्ठान से ही इसे प्राप्त करें जिससे कि प्रयोग एवं सफलता संदिग्ध न हो।


माता महाकाली शरणम् 

स्वामी रामकृष्ण परमहंस - Swami Ramkrishna Pramhans

स्वामी रामकृष्ण परमहंस जीवन चरित्र - भूमिका




भी गुरुजनों एवं प्रथम पूज्य गणपति जी को प्रणाम करते हुए अपने इस महालेख को अपनी जननी एवं सर्वस्व माता महाकाली के चरणों में भेंट करता हूँ और आशा करता हूँ कि उसकी प्रेरणा एवं शक्ति से अपनी इस लेखनी को पूरा कर पाउँगा ठीक उसी प्रकार से जिसप्रकार की लेखन छवि अपने मानस में बना रखी है - आगे माँ जैसा चाहेगी वैसा ही होगा।


यह भारत-भूमि तरह-तरह के रहस्यों और अवतारों से भरी पड़ी है जिसमे कभी राम आये तो कभी कृष्ण आये - यह भारत भूमि भक्त और भगवान की क्रीड़ा स्थली रही है हमेशा से ही -!


इसी धरती में भक्त शिरोमणि श्री रामकृष्ण परमहंस का भी जन्म और उस जन्म की घटना ने बंगाल को सदा-सर्वदा के इस धरती का सिरमौर बना दिया - आज तक अगर किसी भी हृदय में भक्ति भावना है और उसके समक्ष ठाकुर की चर्चा आरम्भ हो तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि इष्ट के प्रेम में सर्वस्व न्योछावर करने की चाह ना जाग उठे - आँखे ना भर आएं - रोंगटे ना खड़े हो जाएँ -!


मैंने तो अपने अब तक के जीवन काल में नहीं देखा इसके अतिरिक्त जिसके सामने भी मैंने कथा कही ठाकुर की - जहाँ भी सन्दर्भ दिया ठाकुर वहीँ भक्ति के ज्वालामुखी फूटे -!


बहुत दिनों से इस प्रकार के किसी लेख के बारे में सोच रहा था जो भक्ति जगत में लहरा उठे - हालांकि विषय नया नहीं है मुझसे पहले भी बहुत से लोग और लेखक इस विषय पर अति महत्वपूर्ण लेख और पुस्तकें लिख चुके हैं जिनके सामने इस लेख का कोई अस्तित्व ना हो शायद किन्तु यह उद्देश्य अस्तित्व का है भी नहीं - यह तो बस उद्दीपन लेख है जो आग जला दे बस - एक नशा सवार करवा दे - जिसके बिना फिर कहीं चैन ना मिले -!


ठाकुर के विषय पर बहुत सी पुस्तकें उपलब्ध हैं - जिनमे तरह-तरह से उनसे सम्बंधित तथ्य और जानकारियां उपलब्ध हैं लेकिन हमारे मित्रों और आज के समाज की निर्भरता अंतर्जाल पर इतनी बढ़ गयी है कि पुस्तक आदि पढ़ने का समय ही निकल नहीं पाता - ऐसे में बहुत से मित्र सारी चीजें इंटरनेट पर ढूंढने का प्रयास करते हैं - लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जो आज भी इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि कहीं कॉपी राइट का मामला है तो कहीं मेहनत करने का जिसकी वजह से लोग लिख नहीं पाते -!


इसी वजह से इस प्रकार के लेखों की सुलभता भी नहीं हो सकी क्योंकि जब कहीं नहीं तो बेचारे कॉपी कैट भी असहाय हो गए -!


बहरहाल जो भी एक प्रयास मैं करना चाहता हूँ आप सबके बीच हो सकता है यह सार्थक रहे या फिर निरर्थक भी लेकिन इससे क्या ? मेरा धर्म है लिखना और धर्म का प्रचार-प्रसार करना और आप लोगों का धर्म उससे अपनी सारवस्तु ग्रहण करना -!


हम सब अपना धर्म पालेंगे -!


चूँकि ऊपर की चंद लाइन पढ़कर ही समझ में आ जाता है कि यह लेख स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी पर आधारित है जिन्हे मैं अपना मानसिक गुरु भी मानता हूँ। अस्तु इसमें मैं उनसे सम्बंधित कुछ प्राथमिक सूचनाएं दूंगा जो विभिन्न श्रोतों द्वारा (श्रवण-पठन-भ्रमण) आदि के द्वारा मुझे ज्ञात हुईं हैं। इस लेख को लिखने का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति पर कोई दबाव बनाना या किसी प्रकार के सिद्धांत का प्रतिपादन अथवा इष्ट निर्धारण आदि बिलकुल भी नहीं है।


इसका एकमात्र उद्देश्य है कि किस प्रकार से समर्पण एवं भक्ति पूर्वक तथा विश्वास से उन ऊंचाइयों को भी प्राप्त किया जा सकता है जिनके बारे में सोचकर भी लोगों डर लगता है - एक बहुत ही अनुभूत तथ्य कह रहा हूँ जो अब तक के अपने जीवन में अनुभव किया है मैंने :


"वे सभी लोग जो स्वयं को नास्तिक कहते हैं वे वास्तव में नास्तिक नहीं होते बल्कि वे अकर्मण्य होते हैं प्रयास करना उनके वश का नहीं होता"


बहरहाल अब हम अपने मूल विषय पर आते हैं और उपलब्ध जानकारियों के एकत्रीकरण द्वारा ठाकुर के विषय में प्राथमिक जानकारियों का प्रस्तुतीकरण करते हैं :

क्रमशः -----

माता महाकाली शरणम् 
इस ब्लॉग का परम ध्येय है जन-मानस में भक्ति भाव का प्रादुर्भाव एवं भौतिकता के इस चरम साम्राज्य में मानसिक शांति के कुछ पल आपके जीवन में समाहित करना, जिससे कि आप पहले की अपेक्षा अधिक शांति और संतुष्टि का आभास कर सकें।


किसी भी प्रकार से यदि आपके जीवन में कुछ शांति के पल आविर्भूत होते हैं तो मैं समझूँगा कि शायद मैंने अपना लक्षित लक्ष्य पा लिया।

किसी भी प्रकार के भ्रम निराकरण अथवा सहायता के लिए संपर्क कर सकते हैं:

rk.singh.fb@gmail.com



माता महाकाली शरणम्