Sunday, December 27, 2015

श्री हनुमत साठिका - Shri Hanumat Sathika









।। अथ श्री हनुमत साठिका ।।

।। चौपाईयाँ ।।
  1. जय जय जय हनुमान अड़न्गी । महावीर विक्रम बजरंगी ।। 
  2. जय कपीश जय पवन कुमारा । जय जय वंदन शील अगारा ।। 
  3. जय आदित्य अमर अविकारी । अरि मरदन जय जय गिरधारी ।। 
  4. अंजनी उदर जन्म तुम लीन्हो । जय जय कार देवतन कीन्हो ।। 
  5. बाजै दुंदिभी गगन गंभीरा । सुर मन हरष असुर मन पीरा ।। 
  6. कपि के डर गढ़ लंक समानी । छूटि बंदि देव तन जानी ।। 
  7. ऋषी समूह निकट चलि आये । पवन तनय के पद सिर नाए ।।
  8. बार बार स्तुति कर नाना । निर्मल नाम धरा हनुमाना ।। 
  9. सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना । दीन बताये लाल फल खाना ।। 
  10. सुनत वचन कपि मन हर्षाना । रवि रथ उदय लाल फल जाना ।।
  11. रथ समेत कपि कीन्ह अहारा । सूर्य बिना भयो अति अँधियारा ।। 
  12. विनय तुम्हार करैं अकुलाना । तब कपीश की स्तुति ठाना ।। 
  13. सकल लोक वृतांत सुनावा । चतुरानन तब रवि उगिलावा ।। 
  14. कहा बहोरि सुनहु बलशीला । रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ।। 
  15. तब तुम उनकर करब सहाई । अबहि बसहु कानन में जाई । ।
  16. असि कहि विधि निज लोक सिधारे । मिले सखा संग पवन कुमारे ।।
  17. खेलें खेल महा तरु तोड़ें । ढेर करें बहु पर्वत फौड़ें ।।
  18. जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई । गिरि समेत पातालाहिं जाई ।। 
  19. कपि सुग्रीव बाली की त्रासा । निरखत रहे राम मगु आशा ।। 
  20. मिले राम तँह पवन कुमारा । अति आनंद सप्रेम दुलारा ।। 
  21. मणि मुंदरी रघुपति सो पाई । सिया खोज ले चलि सिर नाई ।। 
  22. सत जोजन जल निधि विस्तारा । अगर अपार देवतन हारा ।।
  23. जिमि सर गोखुर सरिस कपीशा । लाँघि गए कपि कहि जगदीशा ।। 
  24. सीता चरण शीश तुम नाए । अजर अमर के आशिष पाए ।। 
  25. रहे दनुज उपवन रखवारी । एक से एक महाभट भारी ।। 
  26. तिन्हे मारि पुनि कहेउ कपीसा । दहेऊ लंक कोप्यो भुज बीसा ।। 
  27. सिया बोध दै पुनि फिर आये । रामचंद्र के पाद सिर नाए ।।
  28. मेरु उपार आप छिन माहीं । बांध्यो सेतु निमिष एक मांही ।।
  29. लक्ष्मण शक्ति लागी जबहीं । राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ।। 
  30. भवन समेत सुषेण को लाये । तुरत संजीवन को पुनि धाये ।। 
  31. मग मँह कालनेमि को मारा । अमिट सुभट निशचर संहारा ।। 
  32. आनि संजीवन गिरि समेता । धरि दीन्हो जंह कृपानिकेता ।। 
  33. फनपति केर शोक हरि लीन्हा । हरषि सुरन सुर जय जय कीन्हा ।। 
  34. अहिरावन हरि अनुज समेता । लै गयो तहाँ पाताल निकेता ।।
  35. जहां रहे देवी अस्थाना । दीन चहै बलि काढि कृपाना ।।
  36. पवन तनय प्रभु कीन गुहारी । कटक समेत निशाचर मारी ।। 
  37. रीछ कीशपति सबै बहोरी । राम लखन कीने एक ठौरी ।। 
  38. सब देवतन की बंदि छूडाये। सो कीरति नारद मुनि गाये ।। 
  39. अक्षय कुमार को मार संहारा । लूम लपेटी लंक को जारा ।। 
  40. कुम्भकरण रावण को भाई । ताहि निपाति कीन्ह कपिराई ।। 
  41. मेघनाद पर शक्ति मारा । पवन तनय सब सो बरियारा ।। 
  42. तंहा रहे नारान्तक जाना । पल में हते ताहि हनुमाना ।।
  43. जंह लगि मान दनुज कर पावा । पवन तनय सब मारि नसावा ।। 
  44. जय मारुत सूत जय अनुकूला । नाम कृशानु शोक सम तूला ।। 
  45. जंह जीवन पर संकट होई । रवि तम सम सो संकट खोई ।।
  46. बंदी परै सुमरि हनुमाना । संकट कटे धरे जो ध्याना ।।
  47. यम को बांधि वाम पाद लीन्हा । मारुतसुत व्याकुल सब कीन्हा ।। 
  48. सो भुज बल को दीन्ह कृपाला । तुम्हरे होत मोर यह हाला ।। 
  49. आरत हरण नाम हनुमाना । सादर सुरपति कीन्ह बखाना ।। 
  50. संकट रहे न एक रती को । ध्यान धरे हनुमान जती को ।। 
  51. धावहु देख दीनता मोरी । कहौ पवनसुत युग कर जोरी ।। 
  52. कपिपति बेगि अनुग्रह करहूँ । आतुर आय दुसह दुःख हरहूँ ।। 
  53. राम सपथ मैं तुमहि सुनावा । जवन गुहार लाग सिय जावा ।। 
  54. शक्ति तुम्हार सकल जग जाना । भव बंधन भंजन हनुमाना ।।
  55. यह बंधन कर केतिक बाता । नाम तुम्हार जगत सुख दाता ।। 
  56. करौ कृपा जय जय जग स्वामी । बारि अनेक नमामि नमामी ।। 
  57. भौमवार करि होम विधाना । धूप दीप नैवेद्य सुजाना ।। 
  58. मंगल दायक को लौ लावे । सुर नर मुनि वांछित फल पावै ।। 
  59. जयति जयति जय जय जग स्वामी । समरथ पुरुष सुअंतर जामी ।। 
  60. अंजनि तनय नाम हनुमाना । सो तुलसी के प्राण समाना ।। 
।। दोहा ।। 

जय कपीश सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ।
रामलखन सीता सहित, सदा करौ कल्यान ॥
बन्दौ हनुमत नाम यह, मंगलवार प्रमाण ।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥
जो नित पढै यह साठिका, तुलसी कहै विचारि ।
रहै न संकट ताहि को , साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥

।। सवैया ।।

आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ।।
जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ।।

माता महाकाली शरणम्