Friday, June 20, 2014

माता त्रिपुरसुंदरी षोडशोपचार पूजन - Mata Tripursundari Shodsopchar Pujan

माता त्रिपुरसुंदरी षोडशोपचार पूजन - Mata Tripursundari Shodsopchar Pujan


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ध्यान
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अरुण किरण जालै रंजीता सावकाशा,
विधृत जपवटीका पुस्तकाभीति हस्ता ।
इतरकर वराढय़ा फुल्ल कल्हार संस्था ,
निवसतु हृदि बाला नित्य कल्याण शीला ।।

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पुष्प समर्पण :-
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ॐ देवेशि भक्ति सुलभे परिवार समन्विते
यावत्तवां पूजयिष्यामि तावद्देवी स्थिरा भव

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नमस्कार
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शत्रुनाशकरे देवि ! सर्व सम्पत्करे शुभे
सर्व देवस्तुते ! त्रिपुरसुन्दर्यै ! त्वां नमाम्यहम

१. आसन :- प्रथम दिन कि पूजा में माँ को लाल रंग के कपडे का / आम कि लकड़ी का सिंहासन जो लाल / गुलाबी रंग से रंगा गया हो समर्पित करें एवं माँ को उस पर विराजित करने इसके बाद फिर प्रत्येक दिन माँ के चरणों में निम्न मंत्र को बोलते हुए पुष्प / अक्षत समर्पित करें

ॐ आसनं भास्वरं तुङ्गं मांगल्यं सर्वमंगले
भजस्व जगतां मातः प्रसीद जगदीश्वरी

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै आसनं समर्पयामि )

२. पाद्य :- इस क्रिया में शीतल एवं सुवासित जल से चरण धोएं और ऐसा सोचें कि आपके आवाहन पर माँ दूर से आयी हैं और पाद्य समर्पण से माँ को रास्ते में जो श्रम हुआ लगा है उसे आप दूर कर रहे हैं

ॐ गंगादि सलिलाधारं तीर्थं मंत्राभिमंत्रिम
दूर यात्रा भ्रम हरं पाद्यं तत्प्रति गृह्यतां

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै पाद्यं समर्पयामि )

३. उद्वर्तन :- इस क्रिया में माँ के चरणों में सुगन्धित / तिल के तेल को समर्पित करते हैं

ॐ तिल तण्डुल संयुक्तं कुश पुष्प समन्वितं
सुगंधम फल संयुक्तंमर्ध्य देवी गृहाण में 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै उद्वर्तन तैलं समर्पयामि )

४. आचमन :- इस क्रिया में माँ को आचमनी से या लोटे से आचमन जल प्रदान करते हैं ( याद रहे कि जल समर्पित करने का क्रम आप मूर्ति और यदि जल कि निकासी कि सुगम व्यवस्था है तो कर सकते हैं किन्तु यदि आपने कागज के चित्र को स्थापित किया हुआ है तो चित्र के सम्मुख एक पात्र रख लें और जल से सम्बंधित सारी क्रियाएँ करके जल उसी पात्र में डालते जाएँ )

ॐ स्नानादिक विधायापि यतः शुद्धिख़ाप्यते
इदं आचमनीयं हि कालिके देवी प्रगृह्यताम् 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै आचमनीयम् समर्पयामि )

५. स्नान :- इस क्रिया में सुगन्धित पदार्थों से निर्मित जल से स्नान करवाएं ( जल में इत्र , कर्पूर , तिल , कुश एवं अन्य वस्तुएं अपनी सामर्थ्य या सुविधानुसार मिश्रित कर लें यदि सामर्थ्य नहीं है तो सादा जल भी पर्याप्त है जो पूर्ण श्रद्धा से समर्पित किया गया हो )

ॐ खमापः पृथिवी चैव ज्योतिषं वायुरेव च
लोक संस्मृति मात्रेण वारिणा स्नापयाम्यहम् 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै स्नानं निवेदयामि )

६. मधुपर्क :- इस क्रिया में ( पंचगव्य मिश्रित करें प्रथम दिन ( गाय का शुद्ध दूध , दही , घी , चीनी , शहद ) अन्य दिनों में यदि व्यवस्था कर सकें तो बेहतर है अन्यथा सिर्फ शहद से काम लिया जा सकता है

ॐ मधुपर्क महादेवि ब्रह्मध्धे कल्पितं तव
मया निवेदितम् भक्तया गृहाण गिरिपुत्रिके 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै मधुपर्कं समर्पयामि )

विशेष :- ध्यान रखें चन्दन या सिन्दूर में से कोई भी चीज मस्तक पर समर्पित न करें बल्कि माँ के चरणों में समर्पित करें

७. चन्दन :- इस क्रिया में सफ़ेद चन्दन समर्पित करें

ॐ मळयांचल सम्भूतं नाना गंध समन्वितं
शीतलं बहुलामोदम चन्दम गृह्यतामिदं 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै चन्दनं समर्पयामि )

८. रक्त चन्दन :- इस क्रिया में माँ को रक्त / लाल चन्दन समर्पित करें


ॐ रुक्तानुलेपनम् देवि स्वयं देव्या प्रकाशितं
तद गृहाण महाभागे शुभं देहि नमोस्तुते 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै रक्त चन्दनं समर्पयामि )

९. सिन्दूर :- इस क्रिया में माँ को सिन्दूर समर्पित करें

ॐ सिन्दूरं सर्वसाध्वीनाम भूषणाय विनिर्मितम्
गृहाण वर दे देवि भूषणानि प्रयच्छ में 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै सिन्दूरं समर्पयामि )

१०. कुंकुम :- इस क्रिया में माँ को कुंकुम समर्पित करें

ॐ जपापुष्प प्रभम रम्यं नारी भाल विभूषणम्
भाष्वरम कुंकुमं रक्तं देवि दत्तं प्रगृह्य में 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै कुंकुमं समर्पयामि )

११. अक्षत :- अक्षत में चावल प्रयोग करने होते हैं जो लाल / गुलाबी रंग में रंगे हुए हों

ॐ अक्षतं धान्यजम देवि ब्रह्मणा निर्मितं पुरा
प्राणंद सर्वभूतानां गृहाण वर दे शुभे 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै अक्षतं समर्पयामि )

१२. पुष्प :- माता के चरणो में पुष्प समर्पित करें ( फूलों एवं फूलमालाओं का चुनाव करते समय गुलाब उपयुक्त होगा किन्तु यदि स्थानीय या बाजारीय उपलब्धता के हिसाब से जो उपलब्ध हो वही प्रयोग करें )

ॐ चलतपरिमलामोदमत्ताली गण संकुलम्
आनंदनंदनोद्भूतम् कालिकायै कुसुमं नमः 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै पुष्पं समर्पयामि )

१३. विल्वपत्र :- माता के चरणों में बिल्वपत्र समर्पित करें ( कहीं कहीं पर उल्लेख मिलता कि देवी पूजा में बिल्वपत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है तो इस स्थिति में आप अपने लोक/ स्थानीय प्रचलन का प्रयोग करें )

ॐ अमृतोद्भवम् श्रीवृक्षं शंकरस्व सदाप्रियम
पवित्रं ते प्रयच्छामि सर्व कार्यार्थ सिद्धये 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै बिल्वपत्रं समर्पयामि )

१४. माला :- इस क्रिया में माँ को फूलों कि माला समर्पित करें

ॐ नाना पुष्प विचित्राढ़यां पुष्प मालां सुशोभताम्
प्रयच्छामि सदा भद्रे गृहाण परमेश्वरि 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै पुष्पमालां समर्पयामि )

१५. वस्त्र :- इस क्रिया में माता को वस्त्र समर्पित किये जाते हैं ( एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि वस्त्रों कि लम्बाई १२ अंगुल से कम न हो - प्रथम दिन कि पूजा में लाल  वस्त्र समर्पित किये जाने चाहिए तत्पश्चात [ मौली धागा जिसे प्रायः पुरोहित रक्षा सूत्र के रूप में यजमान के हाथ में बांधते हैं वह चढ़ाया जा सकता है लेकिन लम्बाई १२ अंगुल ही होगी )

अ. ॐ तंतु संतान संयुक्तं कला कौशल कल्पितं
सर्वांगाभरण श्रेष्ठं वसनं परिधीयताम् 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै प्रथम वस्त्रं समर्पयामि )

ब. ॐ यामाश्रित्य महादेवि जगत्संहारकः सदा
तस्यै ते परमेशान्यै कल्पयाम्युत्रीयकम

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै द्वितीय वस्त्रं समर्पयामि )

१५. धूप :- इस क्रिया में सुगन्धित धुप समर्पित करनी है

ॐ गुग्गुलम घृत संयुक्तं नाना भक्ष्यैश्च संयुतम
दशांग ग्रसताम धूपम् त्रिपुरसुन्दर्यै देवि नमोस्तुते 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै धूपं समर्पयामि )

१६. दीप :- इस क्रिया में शुद्ध घी से निर्मित दीपक समर्पित करना है जो कपास कि रुई से बनी बत्तियों से निर्मित हो

ॐ मार्तण्ड मंडळांतस्थ चन्द्र बिंबाग्नि तेजसाम्
निधानं देवि त्रिपुरसुन्दर्यै दीपोअयं निर्मितस्तव भक्तितः
 
( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै दीपं दर्शयामि )

१७. इत्र :- इस क्रिया में माता को इत्र / सुगन्धित सेंट समर्पित करना है

ॐ परमानन्द सौरभ्यम् परिपूर्णं दिगम्बरम्
गृहाण सौरभम् दिव्यं कृपया जगदम्बिके 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि )

१८. कर्पूर दीप :- इस क्रिया में माँ को कर्पूर का दीपक जलाकर समर्पित करना है

ॐ त्वम् चन्द्र सूर्य ज्योतिषं विद्युद्गन्योस्तथैव च
त्वमेव जगतां ज्योतिदीपोअयं प्रतिगृह्यताम् 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै कर्पूर दीपम दर्शयामि )

१९. नैवेद्य :- इस क्रिया में माता को फल - फूल या भोजन समर्पित करते हैं भोजन कम से कम इतनी मात्रा में हो जो एक आदमी के खाने के लिए पर्याप्त हो बाकि सारा कुछ सामर्थ्यानुसार )

ॐ दिव्यांन्नरस संयुक्तं नानाभक्षैश्च संयुतम
चौष्यपेय समायुक्तमन्नं देवि गृहाण में 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै नैवेद्यं समर्पयामि )

२०. खीर :- इस क्रिया में ढूध से निर्मित खीर चढ़ाएं

ॐ गव्यसर्पि पयोयुक्तम नाना मधुर मिश्रितम्
निवेदितम् मया भक्त्या परमान्नं प्रगृह्यताम् 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै दुग्ध खीरम समर्पयामि )

२१. मोदक :- इस क्रिया में माँ को लड्डू समर्पित करने हैं

ॐ मोदकं स्वादु रुचिरं करपुरादिभिरणवितं
मिश्र नानाविधैर्द्रुव्यै प्रति ग्रह्यशु भुज्यतां 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै मोदकं समर्पयामि )

२२. फल :- इस क्रिया में माता को ऋतु फल समर्पित करने होते हैं

ॐ फल मूलानि सर्वाणि ग्राम्यांअरण्यानि यानि च
नानाविधि सुंगंधीनि गृहाण देवि ममाचिरम

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै ऋतुफलं समर्पयामि )

२३. जल :- इस क्रिया में खान - पान के पश्चात् अब माता को जल समर्पित करें

ॐ पानीयं शीतलं स्वच्छं कर्पूरादि सुवासितम्
भोजने तृप्ति कृद्य् स्मात कृपया प्रतिगृह्यतां

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै जलम समर्पयामि )

२४. करोद्वर्तन जल :- इस क्रिया में माता को हाथ धोने के लिए जल प्रदान करें

ॐ कर्पूरादीनिद्रव्याणि सुगन्धीनि महेश्वरि
गृहाण जगतां नाथे करोद्वर्तन हेतवे 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै करोद्वर्तन जलम समर्पयामि )

२५. आचमन :- इस क्रिया में माता को पुनः आचमन करवाएं

ॐ अमोदवस्तु सुरभिकृतमेत्तदनुत्तमम्
गृह्णाचमनीयम तवं मया भक्त्या निवेदितम् 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै पुनराचमनीयम् समर्पयामि )

२६. ताम्बूल :- इस क्रिया में माता को सुगन्धित पान समर्पित करें

ॐ पुन्गीफलम महादिव्यम नागवल्ली दलैर्युतम्
कर्पूरैल्लास समायुक्तं ताम्बूल प्रतिगृह्यताम् 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै ताम्बूलं समर्पयामि )

२७. काजल :- माता को काजल समर्पित करें

ॐ स्निग्धमुष्णम हृद्यतमं दृशां शोभाकरम तव
गृहीत्वा कज्जलं सद्यो नेत्रान्यांजय त्रिपुरसुन्दर्यै

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै कज्जलं समर्पयामि )

२८. महावर :- इस क्रिया में माँ को लाला रंग का महावर समर्पित करते हैं ( लाल रंग एवं पानी का मिश्रण जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पैरों में लगाती हैं )

ॐ चलतपदाम्भोजनस्वर द्युतिकारि मनोहरम
अलकत्कमिदं देवि मया दत्तं प्रगृह्यताम् 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै महावरम समर्पयामि )

२९. चामर :- इस क्रिया में माँ को चामर / पंखा ढलना होता है

ॐ चामरं चमरी पुच्छं हेमदण्ड समन्वितम्
मायार्पितं राजचिन्ह चामरं प्रतिगृह्यताम् 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै चामरं समर्पयामि )

३० . घंटा वाद्यम् :- इस क्रिया में माँ के सामने घंटा / घंटी बजानी होती है ( यह ध्वनि आपके घर और आपसे सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर करती है एवं आपके मन में प्रसन्नता और हर्ष को जन्म देती है )

ॐ यथा भीषयसे दैत्यान् यथा पूरयसेअसुरम
तां घंटा सम्प्रयच्छामि महिषधिनी प्रसीद में 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै घंटा वाद्यं समर्पयामि )

३१. दक्षिणा :- इस क्रिया में माँ को दक्षिणा धन समर्पित किया जाता है - ( जो कि सामर्थ्यानुसार है )

ॐ काञ्चनं रजतोपेतं नानारत्न समन्वितं
दक्षिणार्थम् च देवेशि गृहाण त्वं नमोस्तुते 

( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै आसनं समर्पयामि )

नीराजन :- इस क्रिया में पुनः माँ कि प्राथमिक आरती उतारते हैं जिसमे सिर्फ कर्पूर का प्रयोग होता है

ॐ कर्पूरवर्ति संयुक्तं वहयिना दीपितंचयत
नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके

क्षमा प्रार्थना :-

ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित स्खलितम् मम
क्षम्यतां तज्जगन्मातः कालिके देवी नमोस्तुते
ॐ विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं यदरचितम्
पुर्णम्भवतु तत्सर्वं त्वप्रसादान्महेश्वरी
शक्नुवन्ति न ते पूजां कर्तुं ब्रह्मदयः सुराः
अहं किं वा करिष्यामि मृत्युर्धर्मा नरोअल्पधिः
न जाने अहं स्वरुप ते न शरीरं न वा गुणान्
एकामेव ही जानामि भक्तिं त्वचर्णाबजयोः

आरती :- इस क्रिया में माता कि आरती उतारते हैं और यह चरण आपकी उस काल कि साधना के समापन का प्रतीक है -( इसके लिए अलग से कोई आरती जलने कि कोई जरुरत नहीं है आप उसी दीपक का उपयोग करेंगे जो आपने पूजा के प्रारम्भ में घी का दीपक जलाया था )


जय माता त्रिपुर सुंदरी 
भक्तजन इस बात का ध्यान रखें कि माता के अन्य नाम जो सुविख्यात हैं वह हैं - महात्रिपुरसुन्दरी - त्रिपुरा - राजराजेश्वरी - कामाख्या - बालात्रिपुरसुन्दरी - षोडशी !

अतएव यदि आप माता के अन्य सुविख्यात नामों में से किसी अन्य नाम की उपासना करते हैं तो सिर्फ मन्त्र में परिवर्तन हो जायेगा अन्य सारी विधियां एवं चरण समान ही रहेंगे -!

उदाहरणस्वरूप :-

महात्रिपुरसुन्दरी :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महात्रिपुरसुन्दर्यै
राजराजेश्वरी :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं राजराजेश्वर्यै
त्रिपुरा :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुरर्यै
कामाख्या :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कामाख्यै
बाला त्रिपुरसुंदरी :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बालात्रिपुरसुन्दर्यै
षोडशी :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं षोडष्यै
इत्यादि :-!




Tuesday, June 10, 2014

श्रीछिन्नमस्ता षोडशोपचार पूजन विधि - Chhinnamasta Pujan - Chhinnamasta Shodsopchar Pujan Vidhi

श्रीछिन्नमस्ता षोडशोपचार पूजन विधि - Chhinnamasta Pujan - Chhinnamasta Shodsopchar Pujan Vidhi



श्री छिन्नमस्तिका धाम या माता चिंतपूर्णी की कथा :-

माँ छिन्नमस्तिका चिंताओं का हरण करने वाली माँ हैं . माँ के चरणों में जिस किसी ने भी सच्चे मन से भक्ति की , उसके कष्टों का तुंरत निवारण हो गया. इसी कारण से माँ के भक्तों ने माता छिन्नमस्तिका को माँ चिंतपूर्णी के नाम से पुकारना आरम्भ किया . .

इस धरा के भय मुक्त हो जाने के पश्चात् भगवान् विष्णु ने माता छिन्नमस्तिका को पृथ्वी लोक पर ही विश्राम करने को कहा साथ ही यह वरदान भी दिया कि कलियुग में माँ की शक्तियां भी बढती जायेंगी. ऐसा ही वरदान भगवान् भोले शंकर ( शिव ) ने भी दिया था कि कलियुग के अंतिम चरण में इस सृष्टि का संचालन दस महाविद्याओं द्वारा किया जायेगा. ऐसी मान्यता है कि माँ छिन्नमस्तिका भी इन्हीं दस महाविद्याओं में एक हैं. तेरहवीं शताब्दी के महान दुर्गा भक्त बाबा माई दास को माँ ने सर्व-प्रथम इसी स्थान पर साछात दर्शन दिए थे. इसके साथ ही साथ एक कथा यह भी प्रचलित है कि माँ छिन्नमस्तिका को इस स्थान पर जालंधर नामक दैत्य ने स्थापित किया था. ऐसी मान्यता भी है कि इस स्थान पर जो भक्त शैव और शाक्त कि आराधना करता है, उसे अपनी पूजा का चार गुना फल मिलता है.

बाबा माई दास को साक्षात दर्शन :-

बाबा माईदास ने ही सर्वप्रथम माँ चिंतपूर्णी के निवास कि खोज की थी व बाबा माईदास को ही माँ चिंतपूर्णी ने सर्वप्रथम दर्शन दिए थे . लोक मान्यता व जनश्रुतिनुसार भक्त बाबा माईदास अपने ससुराल जाते समय मार्ग में विश्राम करने हेतु एक बट-वृक्ष के नीचे बैठे और उनकी आँख लग गई. स्वप्न में माँ ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि " हे-माईदास ,तुम यहीं रह कर मेरी सेवा करो इसी से तुहारा कल्याण होगा." आँख खुलने पर बाबा ने वहां कुछ नहीं पाया . पूर्व से ही माँ भगवती के प्रति अपार आस्था व श्रद्धा रखने के कारण बाबा माँ भगवती के उपासक थे . इस स्वप्न के बाद कई दिन तक विचलित यहाँ-वहां भटकने के पश्चात माईदास पुनः उसी स्थान पर लौट आये जहां माता ने उन्हें दर्शन दिए थे. उसी स्थान उन्होंने माँ का स्मरण करना आरम्भ किया और प्रार्थना करने लगे कि " हे माँ मैं तो तुच्छ और बुद्धिहीन हूँ ,यदि मेरी आस्था और भक्ति सच्ची है तो मुझे मार्ग दिखाओ." माईदास कि सरलता व भक्ति से प्रसन्न हो माँ ने एक अत्यंत ही तेजस्वी स्वरुप वाली कन्या के रूप में साक्षात दर्शन दिए और कहा कि यहाँ रह कर उनकी पूजा करें . शंकित हो बाबा ने सरलता से माँ से पूछा कि इस घने जंगल में रहने व खाने की बात तो दूर ,पीने को पानी भी नहीं है . इस भयावह जंगल में वह किस के सहारे रहेंगे ? तब माँ ने मुस्कुरा कर कहा- " चिंता मत करो और पास पड़ा यह पत्थर उखाडो " . इतना कह कर माँ पिंडी के रूप में वहीँ विराजमान हो गईं.
बाबा ने माँ द्वारा बतलाये गए स्थान से पत्थर उखाड़ा तो वहां से एक तेज जल-धारा बह निकली . जिसे देख कर बाबा कि ख़ुशी का ठिकाना न रहा और वह उसी माँ स्वरूपिणी पिंडी कि सेवा व अर्चना में लग गए व वहीँ पास ही कुटिया बना कर रहने लगे. वह ऐतिहासिक पत्थर आज भी वहां विद्यमान है और जिस स्थान से पानी निकला था वह एक पवित्र बावड़ी के रूप में आज भी वहीँ है और माँ चिंतपूर्णी के मंदिर के लिए पवित्र जल इसी बावड़ी से लाया जाता है.शिव मंदिरों द्वारा रक्षित माँ चिंतपूर्णी धाम

प्राचीन धार्मिक-ग्रंथों में यह वर्णन मिलता है कि माँ छिन्नमस्तिका के निवास स्थान के लिए चारों दिशाओं में रुद्रदेव (शिव) का संरक्षण होना आवश्यक है. अर्थात वह स्थान चहुँ-दिशाओं से सामान दूरी से शिव मंदिरों द्वारा रक्षित होगा . यह लक्षण माँ श्री चिंतपूर्णी धाम पर शत-प्रतिशत सत्य लक्षित होते हैं . माँ श्री चिंतपूर्णी धाम के चहुँ दिशाओं में सामान दूरी (२३-२३ किलो मीटर ) पर ऐतिहासिक शिव मंदिर स्थापित हैं . उदाहरण स्वरुप : पूर्व दिशा में श्री कालेश्वर महादेव , पश्चिम में श्री नरयाना महादेव ( यह दोनों मंदिर वर्तमान में ब्यास नदी पर पोंग-बाँध बनने के फलस्वरूप जलमग्न हो चुके है) , दक्षिण दिशा में श्री शिवबाड़ी मंदिर (गगरेट ) और उत्तर दिशा में श्री मुचकुंद महादेव (डालियारा नामक स्थान के निकट ) के मंदिर हैं . माँ ने जब बाबा माईदास को साक्षात् दर्शन दिए थे तब स्वयं कहा था कि उनका निवास स्थान इन देव स्थानों के ही मध्य स्थित है और इस सीमा के अन्दर वह भय-मुक्त हो कर रह सकते है , अर्थात इन चार शिवालयों द्वारा रक्षित सीमा के भीतर .

चिंता-हरण चमत्कारी माँ श्री छिन्नमस्तिका (माँ चिंतपूर्णी ):-

ऐसी मान्यता है कि माँ चिंतपूर्णी मैं आस्था रखने वाले व दर्शन करने वाले भक्तों की न केवल चिंताएँ ही दूर होती हैं बल्कि भक्तों के असंभव कार्य भी पलक झपकते ही पूरे हो जाते हैं. चिंता- हरण माँ ने तो भक्तों व उनके परिवारों की जिन्दगी ही बदल कर रख दी हैं. देश ही नहीं विदेशों मैं रहने वाले माँ के भक्त हजारों-लाखों कि संख्या मैं यहाँ माथा टेकने आते हैं. वर्ष २००२ की ही बात करें तो इंग्लॅण्ड में रहने वाले भारतीय मूल के श्री रोशन (मूल निवासी मेहरी गेट , सिक्खां मोहल्ला ,फगवाडा ) की धरमपत्नी श्रीमती रानी पिछले साडे तीन वर्षों से पक्षाघात के कारण बोलने में असमर्थ हो गई थीं . बहुत इलाज करवाने के पश्चात् भी कुछ लाभ नहीं हुआ और पत्नी श्रीमती रानी को घोर निराशा ने घेर लिया . तब मन में माँ चिंतपूर्णी के लिए गहन आस्था व श्रद्घा लिए रोशन लाल जी चिंतपूर्णी धाम बस-अड्डे से पेट के बल दंडवत होकर माँ के दरबार में सपरिवार अपनी पत्नी के स्वस्थ होने कि कामना लेकर आये. मंदिर परिसर में बैठी पत्नी ने जब अचानक जोर से माँ का जय-कारा लगा दिया तो सारे परिवार कि ऑंखें छलक गईं और सारे इलाके में यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई. इससे पूर्व जम्मू से आया एक सोलह वर्षीया गूंगा बालक भी माँ के चमत्कार से बोलने लगा था. माँ के भक्तों पर ऐसे चमत्कार होते ही रहते हैं ऐसी भक्तों की मान्यता है. .   

पूजन क्रम में गुरु एवं गणपति पूजन संपन्न करें :-

गुरु पंचोपचार पूजन :-

ॐ गुं गुरुवे गन्धं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए गन्धादि द्रव्य / इत्र समर्पित करें )
ॐ गुं गुरुवे पुष्पं समर्पयामि (उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करें )
ॐ गुं गुरुवे धूपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए धुप / अगरबत्ती समर्पित करें )
ॐ गुं गुरुवे दीपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए दीपक जलाएं )
ॐ गुं गुरुवे नैवेद्यं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए नैवेद्य { मिठाई / फल /खीर } इत्यादि का भोग लगाएं )

गुरु ध्यान :-

वराक्ष मालां दण्डं च कमन्सलधरं विभुं ।
पुष्यरागान्कितं पीतं वरदं भावयेत गुरुं ॥
बृहस्पते अतियदर्यो अर्हाद्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यद्देद याचन सर्तप्रजात तदास्म सुद्रविणं धेहिचित्रम ॥

यदि गुरु मन्त्र धारण किये हुए हैं तो एक माला गुरु मंत्र का जाप करें - यदि गुरु मन्त्रधारी नहीं हैं तो मानसिक रूप से किसी को गुरु स्वीकार करें और उनको साक्षी मानकर पूजन करें -!

विशेष :- बहुत से लोग यह कहते हैं की साधना में गुरु आवश्यक नहीं है या फिर यह कहते हुए मिल जाते हैं की भगवान शिव को गुरु स्वीकार करके पूजन कर्म का प्रारम्भ किया जा सकता है - मैं इस सिद्धांत से पुरे तरीके से सहमत हूँ लेकिन थोड़े से परिवर्तन के साथ - क्योंकि जगत व्यवहार और भौतिक शरीर धारी होने के हिसाब से भौतिक गुरु परम आवश्यक है - इसलिए पहले किसी भौतिक गुरु का वरण करें तत्पश्चात पूजन कार्य प्रारम्भ करें - एक सरल उपाय है गुरु वरण करने का -!


( अक्सर हमारे मन में कई बार किसी व्यक्ति की एक छवि होती है और हमारी नजर में वह इस योग्य होता है की वह हमारा मार्गदर्शन कर सके - अगर ऐसा कोई व्यक्ति या उसकी छवि आपके मन में है तो इसके लिए बिलकुल भी जरुरी नहीं है कि आप भरी-भरकम गुरु दक्षिणा की राशि भरकर गुरु दीक्षा लें ही लें - आप उस व्यक्ति को मानसिक रूप से गुरु स्वीकार कर सकते हैं इसके लिए कम से कम उस व्यक्ति का कोई चित्र आपके पास होना चाहिए यदि नहीं है तो हल्दी / turmuric की गाँठ को भी गुरु चित्र के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है एवं कोशिश यह करें की यदि संभव है तो उस मानसिक गुरु से वर्ष में एक बार संपर्क अवश्य करें और उसे यथोचित सम्मान प्रदान करें -!)


तत्पश्चात गणपति पूजन करें :-


गणपति पंचोपचार पूजन :-



ॐ गं गणपतये गन्धं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए गन्धादि द्रव्य / इत्र समर्पित करें )
ॐ गं गणपतये पुष्पं समर्पयामि (उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करें )
ॐ गं गणपतये धूपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए धुप / अगरबत्ती समर्पित करें )
ॐ गं गणपतये दीपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए दीपक जलाएं )
ॐ गं गणपतये नैवेद्यं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए नैवेद्य { मिठाई / फल /खीर } इत्यादि का भोग लगाएं )

गणपति ध्यान :-

ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं, लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं, सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम्।।



माता का पूजन प्रारम्भ :-

ध्यान रखें कि माँ की पूजा या अर्चना में कबंध का पूजन अति आवश्यक है - बिना कबंध पूजन के माँ की पूजा कभी भी फलदायी नहीं होती है ऐसा संतजनों और तंत्र शास्त्रों का कथन है एवं पूजन में तेल का प्रयोग कभी भूलकर भी ना करें सिर्फ घृतयुक्त दीपक ही जलाएं :-

अस्तु प्रथम कबंध रूप शिव की स्थापना करें तत्पश्चात पंचोपचार से पूजन करके निम्नलिखित मन्त्र की एक माला जाप करें :-

ॐ कबंधाय गन्धं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए गन्धादि द्रव्य / इत्र समर्पित करें )
ॐ कबंधाय पुष्पं समर्पयामि (उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करें )
ॐ कबंधाय धूपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए धुप / अगरबत्ती समर्पित करें )
ॐ कबंधाय दीपं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए दीपक जलाएं )
ॐ कबंधाय नैवेद्यं समर्पयामि ( उच्चारण करते हुए नैवेद्य { मिठाई / फल /खीर } इत्यादि का भोग लगाएं )

पंचोपचार पूजन के पश्चात कबंध मन्त्र का एक माला जाप करें :-

मन्त्र :- " ॐ कबंधाय नमः "

तत्पश्चात माता की प्रेम और निष्ठापूर्वक पूजा आरम्भ करें :-

स्तुति :-


छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम,

प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम,

पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,

विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम,

दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम,

दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम,

अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम,

डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत:


विनियोग :-

ॐ अस्य श्रीछिन्नमस्तामन्त्रस्य भैरवऋषिः सम्राट्‌छन्दः छिन्नमस्तादेवता हूं हूं बीजं स्वाहाशक्तिरात्मनोऽभीष्टसिद्ध्यर्थं जपे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यास :-


ॐ भैरवाय ऋषये नमः शिरसि,
ॐ सम्राट्‌छन्दसे नमः मुखे
छिन्नमस्तादेवतायै नमः हृदि
हूं हूं बीजाय नमः गुह्ये
शक्तये नमः पादयोः

अङ्गन्यास :-


ॐ आं खड्‌गाय ह्रीं ह्रीं फट्‍ हृदयाय स्वाहा,
ॐ ईं सुखड्‌गाय ह्रीं ह्रीं फट्‌ शिरसे स्वाहा,
ॐ ऊं वज्राय ह्रीं ह्रीं फट्‌ शिखायै स्वाहा,
ॐ ऐं पाशाय ह्रीं ह्रीं फट्‌ कवचाय स्वाहा,
ॐ औं अंकुशाय ह्रीं ह्रीं फट्‍ नेत्रत्रयाय स्वाहा,
ॐ अः वसुरक्षाय ह्रीं ह्रीं फट्‌ अस्त्राय फट् स्वाहा,

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ध्यान :-
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रक्ताभां रक्तकेशीं करकमललसत्कर्त्रिकां कालकान्तिं
विच्छिन्नात्मीयमुण्डासृगरुणबहुलोदग्रधारां पिबन्तीम् ।
विघ्नाभ्रौघप्रचण्डश्वसनसमनिभां सेवितां सिद्धसङ्घैः
पद्माक्षीं छिन्नमस्तां छलकरदितिजच्छेदिनीं संस्मरामि ॥

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पुष्प समर्पण :-
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ॐ देवेशि भक्ति सुलभे परिवार समन्विते
यावत्तवां पूजयिष्यामि तावद्देवी स्थिरा भव


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नमस्कार:-
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शत्रुनाशकरे देवि ! सर्व पालनकर्त्री ! सर्व सम्पत्करे शुभे
सर्व देवस्तुते ! छिन्नमस्तिके ! त्वां नमाम्यहम



१. आसन :- प्रथम दिन कि पूजा में माँ को लाल रंग के कपडे का / आम कि लकड़ी का सिंहासन जो लाल रंग से रंगा गया हो समर्पित करें एवं माँ को उस पर विराजित करने इसके बाद फिर प्रत्येक दिन माँ के चरणों में निम्न मंत्र को बोलते हुए पुष्प / अक्षत समर्पित करें

ॐ आसनं भास्वरं तुङ्गं मांगल्यं सर्वमंगले
भजस्व जगतां मातः प्रसीद जगदीश्वरी

( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा आसनं समर्पयामि )

२. पाद्य :- इस क्रिया में शीतल एवं सुवासित जल से चरण धोएं और ऐसा सोचें कि आपके आवाहन पर माँ दूर से आयी हैं और पाद्य समर्पण से माँ को रास्ते में जो श्रम हुआ लगा है उसे आप दूर कर रहे हैं

ॐ गंगादि सलिलाधारं तीर्थं मंत्राभिमंत्रिम
दूर यात्रा भ्रम हरं पाद्यं तत्प्रति गृह्यतां 

(  ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा पाद्यं समर्पयामि )

३. उद्वर्तन :- इस क्रिया में माँ के चरणों में सुगन्धित / तिल के तेल को समर्पित करते हैं

ॐ तिल तण्डुल संयुक्तं कुश पुष्प समन्वितं
सुगंधम फल संयुक्तंमर्ध्य देवी गृहाण में


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा उद्वर्तन तैलं समर्पयामि )

४. आचमन :- इस क्रिया में माँ को आचमनी से या लोटे से आचमन जल प्रदान करते हैं ( याद रहे कि जल समर्पित करने का क्रम आप मूर्ति और यदि जल कि निकासी कि सुगम व्यवस्था है तो कर सकते हैं किन्तु यदि आपने कागज के चित्र को स्थापित किया हुआ है तो चित्र के सम्मुख एक पात्र रख लें और जल से सम्बंधित सारी क्रियाएँ करके जल उसी पात्र में डालते जाएँ )

ॐ स्नानादिक विधायापि यतः शुद्धिख़ाप्यते
इदं आचमनीयं हि छिन्नमस्तिके देवी प्रगृह्यताम्


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा आचमनीयम् समर्पयामि )

५. स्नान :- इस क्रिया में सुगन्धित पदार्थों से निर्मित जल से स्नान करवाएं ( जल में इत्र , कर्पूर , तिल , कुश एवं अन्य वस्तुएं अपनी सामर्थ्य या सुविधानुसार मिश्रित कर लें यदि सामर्थ्य नहीं है तो सदा जल भी पर्याप्त है जो पूर्ण श्रद्धा से समर्पित किया गया हो )

ॐ खमापः पृथिवी चैव ज्योतिषं वायुरेव च
लोक संस्मृति मात्रेण वारिणा स्नापयाम्यहम्


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा स्नानं निवेदयामि )

६. मधुपर्क :- इस क्रिया में ( पंचगव्य मिश्रित करें प्रथम दिन ( गाय का शुद्ध दूध , दही , घी , चीनी , शहद ) अन्य दिनों में यदि व्यवस्था कर सकें तो बेहतर है अन्यथा सिर्फ शहद से काम लिया जा सकता है

ॐ मधुपर्क महादेवि ब्रम्हाद्धे कल्पितं तव
मया निवेदितम् भक्तया गृहाण गिरिपुत्रिके


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा मधुपर्कं समर्पयामि )

विशेष :- ध्यान रखें चन्दन या सिन्दूर में से कोई भी चीज मस्तक पर समर्पित न करें बल्कि माँ के चरणों में समर्पित करें

७. चन्दन :- इस क्रिया में सफ़ेद चन्दन समर्पित करें

ॐ मळयांचल सम्भूतं नाना गंध समन्वितं
शीतलं बहुलामोदम चन्दम गृह्यतामिदं


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा चन्दनं समर्पयामि )

८. रक्त चन्दन :- इस क्रिया में माँ को रक्त / लाल चन्दन समर्पित करें

ॐ रुक्तानुलेपनम् देवि स्वयं देव्या प्रकाशितं
तद गृहाण महाभागे शुभं देहि नमोस्तुते


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा रक्त चन्दनं समर्पयामि )

९. सिन्दूर :- इस क्रिया में माँ को सिन्दूर समर्पित करें

ॐ सिन्दूरं सर्वसाध्वीनाम भूषणाय विनिर्मितम्
गृहाण वर दे देवि भूषणानि प्रयच्छ में


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा सिन्दूरं समर्पयामि ) 

१०. कुंकुम :- इस क्रिया में माँ को कुंकुम समर्पित करें

ॐ जपापुष्प प्रभम रम्यं नारी भाल विभूषणम्
भाष्वरम कुंकुमं रक्तं देवि दत्तं प्रगृह्य में


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा कुंकुमं समर्पयामि )

११. अक्षत :- अक्षत में चावल प्रयोग करने होते हैं जो लाल रंग में रंगे हुए हों

ॐ अक्षतं धान्यजम देवि ब्रह्मणा निर्मितं पुरा
प्राणंद सर्वभूतानां गृहाण वर दे शुभे


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा अक्षतं समर्पयामि )

१२. पुष्प :- माता के चरणो में पुष्प समर्पित करें ( फूलों एवं फूलमालाओं का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि यदि आपको लाल गुलाब मिल जाये तो बहुत बढ़िया यदि नहीं मिलता तो कोई सा भी गुलाब उपयुक्त होगा किन्तु यदि स्थानीय या बाजारीय उपलब्धता के हिसाब से जो उपलब्ध हो वही प्रयोग करें )

ॐ चलतपरिमलामोदमत्ताली गण संकुलम्
आनंदनंदनोद्भूतम् कालिकायै कुसुमं नमः


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा पुष्पं समर्पयामि )

१३. विल्वपत्र :- माता के चरणों में बिल्वपत्र समर्पित करें ( कहीं कहीं पर उल्लेख मिलता कि देवी पूजा में बिल्वपत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है तो इस स्थिति में आप अपने लोक/ स्थानीय प्रचलन का प्रयोग करें )

ॐ अमृतोद्भवम् श्रीवृक्षं शंकरस्व सदाप्रियम
पवित्रं ते प्रयच्छामि सर्व कार्यार्थ सिद्धये


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा बिल्वपत्रं समर्पयामि )

१४. माला :- इस क्रिया में माँ को फूलों कि माला समर्पित करें

ॐ नाना पुष्प विचित्राढ़यां पुष्प मालां सुशोभिताम्
प्रयच्छामि सदा भद्रे गृहाण परमेश्वरि


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा पुष्पमालां समर्पयामि )

१५. वस्त्र :- इस क्रिया में माता को वस्त्र समर्पित किये जाते हैं ( एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि वस्त्रों कि लम्बाई १२ अंगुल से कम न हो - प्रथम दिन कि पूजा में लाल वस्त्र समर्पित किये जाने चाहिए तत्पश्चात [ मौली धागा जिसे प्रायः पुरोहित रक्षा सूत्र के रूप में यजमान के हाथ में बांधते हैं वह चढ़ाया जा सकता है लेकिन लम्बाई १२ अंगुल ही होगी )

अ. ॐ तंतु संतान संयुक्तं कला कौशल कल्पितं
सर्वांगाभरण श्रेष्ठं वसनं परिधीयताम्


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा प्रथम वस्त्रं समर्पयामि )

ब. ॐ यामाश्रित्य महादेवि पालिन्यै सदा
तस्यै ते परमेशान्यै कल्पयाम्युत्रीयकम


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा द्वितीय वस्त्रं समर्पयामि )

१५. धूप :- इस क्रिया में सुगन्धित धुप समर्पित करनी है

ॐ गुग्गुलम घृत संयुक्तं नाना भक्ष्यैश्च संयुतम
दशांग ग्रसताम धूपम् छिन्ने देवि नमोस्तुते


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा धूपं समर्पयामि )

१६. दीप :- इस क्रिया में शुद्ध घी से निर्मित दीपक समर्पित करना है जो कपास कि रुई से बनी बत्तियों से निर्मित हो

ॐ मार्तण्ड मंडळांतस्थ चन्द्र बिंबाग्नि तेजसाम्
निधानं देवि छिन्ने दीपोअयं निर्मितस्तव भक्तितः


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा दीपं दर्शयामि )

१७. इत्र :- इस क्रिया में माता को इत्र / सुगन्धित सेंट समर्पित करना है

ॐ परमानन्द सौरभ्यम् परिपूर्णं दिगम्बरम्
गृहाण सौरभम् दिव्यं कृपया जगदम्बिके


( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि )


१८. कर्पूर दीप :- इस क्रिया में माँ को कर्पूर का दीपक जलाकर समर्पित करना है

ॐ त्वम् चन्द्र सूर्य ज्योतिषं विद्युद्गन्योस्तथैव च
त्वमेव जगतां ज्योतिदीपोअयं प्रतिगृह्यताम्


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा कर्पूर दीपम दर्शयामि )

१९. नैवेद्य :- इस क्रिया में माता को फल - फूल या भोजन समर्पित करते हैं भोजन कम से कम इतनी मात्रा में हो जो एक आदमी के खाने के लिए पर्याप्त हो बाकि सारा कुछ सामर्थ्यानुसार )

ॐ दिव्यांन्नरस संयुक्तं नानाभक्षैश्च संयुतम
चौष्यपेय समायुक्तमन्नं देवि गृहाण में


( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा नैवेद्यं समर्पयामि )

२०. खीर :- इस क्रिया में ढूध से निर्मित खीर चढ़ाएं

ॐ गव्यसर्पि पयोयुक्तम नाना मधुर मिश्रितम्
निवेदितम् मया भक्त्या परमान्नं प्रगृह्यताम्


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा दुग्ध खीरम समर्पयामि )

२१. मोदक :- इस क्रिया में माँ को लड्डू समर्पित करने हैं

ॐ मोदकं स्वादु रुचिरं करपुरादिभिरणवितं
मिश्र नानाविधैर्द्रुव्यै प्रति ग्रह्यशु भुज्यतां


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा मोदकं समर्पयामि )

२२. फल :- इस क्रिया में माता को ऋतु फल समर्पित करने होते हैं

ॐ फल मूलानि सर्वाणि ग्राम्यांअरण्यानि यानि च
नानाविधि सुंगंधीनि गृहाण देवि ममाचिरम


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा ऋतुफलं समर्पयामि )

२३. जल :- इस क्रिया में खान - पान के पश्चात् अब माता को जल समर्पित करें

ॐ पानीयं शीतलं स्वच्छं कर्पूरादि सुवासितम्
भोजने तृप्ति कृद्य्स्मात कृपया प्रतिगृह्यतां


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा जलम समर्पयामि )

२४. करोद्वर्तन जल :- इस क्रिया में माता को हाथ धोने के लिए जल प्रदान करें

ॐ कर्पूरादीनिद्रव्याणि सुगन्धीनि महेश्वरि
गृहाण जगतां नाथे करोद्वर्तन हेतवे


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा करोद्वर्तन जलम समर्पयामि )

२५. आचमन :- इस क्रिया में माता को पुनः आचमन करवाएं

ॐ अमोदवस्तु सुरभिकृतमेत्तदनुत्तमम्
गृह्णाचमनीयम तवं माया भक्त्या निवेदितम्


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा पुनराचमनीयम् समर्पयामि )

२६. ताम्बूल :- इस क्रिया में माता को सुगन्धित पान समर्पित करें

ॐ पुन्गीफलम महादिव्यम नागवल्ली दलैर्युतम्
कर्पूरैल्लास समायुक्तं ताम्बूल प्रतिगृह्यताम्


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा ताम्बूलं समर्पयामि )

२७. काजल :- माता को काजल समर्पित करें

ॐ स्निग्धमुष्णम हृद्यतमं दृशां शोभाकरम तव
गृहीत्वा कज्जलं सद्यो नेत्रान्यांजय कालिके


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा कज्जलं समर्पयामि )

२८. महावर :- इस क्रिया में माँ को लाला रंग का महावर समर्पित करते हैं ( लाल रंग एवं पानी का मिश्रण जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पैरों में लगाती हैं )

ॐ चलतपदाम्भोजनस्वर द्युतिकारि मनोहरम
अलकत्कमिदं देवि मया दत्तं प्रगृह्यताम्


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा महावरम समर्पयामि )

२९. चामर :- इस क्रिया में माँ को चामर / पंखा ढलना होता है

ॐ चामरं चमरी पुच्छं हेमदण्ड समन्वितम्
मायार्पितं राजचिन्ह चामरं प्रतिगृह्यताम्


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा चामरं समर्पयामि )

३० . घंटा वाद्यम् :- इस क्रिया में माँ के सामने घंटा / घंटी बजानी होती है ( यह ध्वनि आपके घर और आपसे सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर करती है एवं आपके मन में प्रसन्नता और हर्ष को जन्म देती है )

ॐ यथा भीषयसे दैत्यान् यथा पूरयसेअसुरम
तां घंटा सम्प्रयच्छामि महिषधिनी प्रसीद में


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा घंटा वाद्यं समर्पयामि )

३१. दक्षिणा :- इस क्रिया में माँ को दक्षिणा धन समर्पित किया जाता है - ( जो कि सामर्थ्यानुसार है )

ॐ काञ्चनं रजतोपेतं नानारत्न समन्वितं
दक्षिणार्थम् च देवेशि गृहाण त्वं नमोस्तुते


( ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा दक्षिणां समर्पयामि )

३३. पुष्पांजलि :-

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा
परमेश्वरि पुष्पांजलिं समर्पयामि


३४. नीराजन :- इस क्रिया में पुनः माँ कि प्राथमिक आरती उतारते हैं जिसमे सिर्फ कर्पूर का प्रयोग होता है

ॐ कर्पूरवर्ति संयुक्तं वह्नि दीपितंचयत
नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके


३५. क्षमा प्रार्थना :- 

ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित स्खलितम् मम
क्षम्यतां तज्जगन्मातः छिन्ने देवी नमोस्तुते
ॐ विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं यदरचितम्
पुर्णम्भवतु तत्सर्वं त्वप्रसादान्महेश्वरी
शक्नुवन्ति न ते पूजां कर्तुं ब्रह्मदयः सुराः
अहं किं वा करिष्यामि मृत्युर्धर्मा नरोअल्पधिः
न जाने अहं स्वरुप ते न शरीरं न वा गुणान्
एकामेव ही जानामि भक्तिं त्वचर्णाबजयोः


३६. आरती :- इस क्रिया में माता कि आरती उतारते हैं और यह चरण आपकी उस काल कि साधना के समापन का प्रतीक है -( इसके लिए अलग से कोई आरती जलने कि कोई जरुरत नहीं है आप उसी दीपक का उपयोग करेंगे जो आपने पूजा के प्रारम्भ में घी का दीपक जलाया था )

माता महाकाली शरणम् 

Saturday, June 7, 2014

तारा षोडशोपचार पूजन विधि - Tara Shodsopchar Pujan Vidhi

::: माता तारा ::: 



तारा षोडशोपचार पूजन विधि - Tara Shodsopchar Pujan Vidhi

सभी विज्ञजनो एवं पूर्व में कर चुके सभी अनुभवी साधकों से मेरा विनम्र निवेदन है कि यदि मेरे इस लिखे विधान में कोई त्रुटि नजर आये तो कृपया मुझे सुझाव प्रदान करें जिससे यह विधान जनहित में और भी अधिक परिष्कृत हो सके - इसके अतिरिक्त सभी नए एवं पुराने साधकों के समक्ष यह स्पष्ट कर दूँ कि यह विधान कोई सिद्धि विधान नहीं यह मातृ इष्ट निर्धारण और आजीवन पूजा पद्धति है - मैं वस्तुतः सिद्धियों के पूर्णतया खिलाफ हूँ और बस समर्पण और प्रेम के माध्यम से महाविद्याओं के चरणों में जगह बनाना चाहता हूँ एवं अन्य उन साधकों के लिए भी ये विधान समर्पित करना चाहता हूँ जो सामयिक सफलता के स्थान पर सर्वकालिक क्षमताओं को विकसित और पल्लवित करना चाहते हैं -!


सिद्धिगत सफलता के लिए माँ तारा कि साधना में वाम मार्ग का अनुसरण करना आवश्यक है - किन्तु यदि हम सिद्धि की जगह भक्ति पर दें तो हम उनकी कृपा किसी भी मार्ग से प्राप्त कर सकते हैं और मैं सात्विक / दक्षिण मार्ग का समर्थक हूँ अतएव मैं इसी मार्ग के विधान यहाँ प्रस्तुत करूँगा -!


किसी भी साधना के मार्ग में गुरु का बहुत बड़ा स्थान होता है एवं सर्वप्रथम गुरु का पूजन होता है इसलिए यदि पहले से ही आपके पास गुरु हैं और आपने गुरु मंत्र लिया हुआ है तो अपने गुरु का एक चित्र या गुरु प्रदत्त यन्त्र को अपने साथ रखें किन्तु यदि आपके पास कोई गुरु नहीं है तो निराश होने कि कोई जरुरत नहीं है आप मेरे गुरु को अपना गुरु स्वीकार करके अपनी साधना प्रारम्भ कर सकते हैं - मेरे गुरु को अपना गुरु स्वीकार करने के लिए आपको कुछ भी खास नहीं करना बस मुझे एक सन्देश भेजें मैं अपने गुरु कि तस्वीर आपको भेज दूंगा और तस्वीर को आप अपने पूजा स्थल में रखकर अपनी साधना के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं :::


साधना मार्ग में आगे बढ़ने से पहले एक बात :- माता तारा का मंत्र " त्रीं " है किन्तु "त्रीं" बीजमंत्र वशिष्ठ ऋषि द्वारा शापित कर दिया गया था अतएव "स्त्रीं " को बीज मंत्र के रूप में जपा जाता है इसमें " आधा स " लगाने से शाप विमोचन हो जाता है एवं माँ तारा कि साधना अक्षोभ ऋषि/भैरव (तारापुत्र ) कि पूजा के बिना फलप्रद नहीं होती तथा यदि कोई साधक इस साधना को अक्षोभ ऋषि कि पूजा किये बिना करता है तो वह अपने सर्वस्व का नाश कर बैठता है -!


माता कि साधना में अधिकतम वस्तुएं नीले रंग कि प्रयोग की जानी चाहिए


पूजन सामग्री :-


एक आसन - नीला रंग - माँ कि स्थापना के लिए
एक आसन - नीला रंग - आपकी साधना के लिए
एक ताम्बे कि प्लेट - गुरु चित्र स्थापित करने के लिए
एक ताम्बे का -लोटा - जल रखने के लिए
एक ताम्बे कि छोटी चमची - जल एवं आचमन समर्पण के लिए
एक माला - मंत्र जप के लिए ( काला हकीक / रुद्राक्ष / लाल मूंगा )



गुरु का चित्र , आम की लकड़ी से बना सिंहासन या फिर जो भी उपलब्ध हो सामर्थ्य के अनुसार , सिंहासन वस्त्र ( जो सिंहासन पर बिछाया जायेगा ) माता को समर्पित करने के लिए वस्त्र , माता के लिए श्रंगार सामग्री , साधक के खुद के लिए कपडे जो नीले रंग के होने चाहिए तथा यदि किसी पुरोहित की मदद लेते हैं पूजा में तो पुरोहित के लिए कपडे ( पुरोहित को समर्पित किये जाने वाले कपड़ों में रंग भेद नहीं होगा ) जनेउ , लाल अबीर ,

२. पान के पत्ते , सुपारी , लौंग , काले तिल , सिंदूर , लाल चन्दन ,गाय का घी , गाय का दूध , गाय का गोबर

३. धूप , सुगन्धित अगरबत्ती , रुई , कपूर , पञ्चरत्न , कलश के लिए मिटटी का घड़ा , नारियल ( एक कच्चा और एक सूखा )

४. केले , फल पांच प्रकार के , पांच प्रकार की मिठाई

५. पुष्प , विल्व पत्र ( बेल पत्र ) , आम के पत्ते , केले के पत्ते , गंगाजल , अरघी , पांच बर्तन कांसे के / पीतल के ( २ कटोरी , २ थाली , १ गिलास )

६. आसन कम्बल के - नीला रंग -२ ( यदि पुरोहित साथ में हों तो २ अन्यथा १ ) चौमुखी दीपक , रुद्राक्ष या लाल चन्दन की माला , आम की लकड़ी , माचिस , दूर्वादल ( दूब ) , शहद , शक्कर , पुस्तक ( जिसके विधि विधान से साधना की जानी है ) , जौ , अभिषेक करने के लिए पात्र , विग्रह ( स्नान के बाद और नवेद्य समर्पित करने के पश्चात ) पोंछने के लिए नीला कपडा , शंख , पंचमेवा , मौली , सात रंगों में रंगे हुए चावल , एवं भेंट में प्रदान करने के लिए द्रव्य ( दक्षिणा धन ) !



नित्य पूजा प्रकाश में वर्णित कुछ पूजन से सम्बंधित तथ्य :-




अक्षत :- कम से कम सौ की मात्र में हों

दूर्वा :- कम से कम सौ की मात्र में हों

आसन :- आसन समर्पण के समय आसन में पुष्प भी चढाने चाहिए

पाद्य :- चार आचमनी जल उसमे श्यामा घास ( दूर्वा / दूब ) कमल पुष्प देने चाहिए

अर्घ्य :- चार आचमनी जल , गंध पुष्प , अक्षत ( चावल ) दूर्वा , काले तिल , कुशा , एवं सफ़ेद सरसों

आचमन में :- छः आचमनी जल तथा लौंग

मधुपर्क :- कांश्य / ताम्बे के पात्र में घी , शहद , दही

स्नान/ विग्रह :- पचास आचमनी जल

वस्त्र :- वस्त्रों का जोड़ा भेंट करना चाहिए

आभूषण :- स्वर्ण से बने हुए हों या फिर सामर्थ्यानुसार अथवा यदि उपलब्धता न हो तो सांकेतिक या मानसिक आभूषण समर्पण

गंध :- चन्दन , अगर और कर्पूर को एक साथ मिलकर बनाया गया हो

पुष्प :- कई रंग के हों और कम से कम पचास हों

धूप :- गुग्गल का धूप अति उत्तम होता है और कांश्य / ताम्र पात्र में समर्पित करना चाहिए

नैवेद्य :- कम से कम एक व्यक्ति के खाने लायक वस्तुएं होनी चाहिए

दीप :- कपास की रुई में कर्पूर मिलकर लगभग चार अंगुल लम्बी बत्ती होनी चाहिए

सारी सामग्री को अलग अलग बर्तन में होना चाहिए और बर्तन / पात्र स्वर्ण/ रजत / कांश्य / पीतल / ताम्र से निर्मित हों .... या फिर मिटटी के बने हुए हों

:::पूजन प्रारम्भ :::


१. गणेश पूजन ::

आवाहन :- गदा बीज पूरे धनु शूल चक्रे
सरोजोत्पले पाशधान्या ग्रदन्तानकरै संदधानं
स्वशुंडा ग्रराजन मणीकुंभ मंकाधि रूढं स्वपत्न्या
सरोजन्मा भुषणानाम्भ रेणोज्जचलम
द्धस्त्न्वया समालिंगिताम करीद्राननं चन्द्रचूडाम
त्रिनेत्र जगन्मोहनम रक्तकांतिम भजेत्तमम

गणपति पंचोपचार पूजन :::

ॐ गंगाजले स्नानियम समर्पयामि श्री गणेशाय नमः

ॐ अक्षतं समर्पयामि भगवते श्री गणपति नमः

ॐ वस्त्रं समर्पयामि भगवान् श्री गणपति नमः

ॐ चन्दनं समर्पयामि भगवान् गणपति इदं आगच्छ इहतिष्ठ

ॐ विल्वपत्रम समर्पयामि भगवते श्री गणपति नमः

ॐ पुष्पं समर्पयामि भगवान् श्री गणपति नमः

ॐ नवेद्यम समर्पयामि भगवान् गणपति इदं आगच्छ इहतिष्ठ

इस प्रकार पंचोपचार पूजन के पश्चात् हाथ जोड़कर भगवान् गणपति की अराधना निम्न स्तोत्र के द्वारा करें :::

विश्वेश माधवं ढुंढी दंडपाणि बन्दे काशी

गुह्या गंगा भवानी मणिक कीर्णकाम

वक्रतुंड महाकाय कोटि सूर्य सम प्रभ

निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा

सुमश्वश्यैव दन्तस्य कपिलो गज कर्ण कः

लम्बरोदस्य विकटो विघ्ननासो विनायकः

धूम्रकेतु गर्णाध्यक्ष तो भालचन्द्रो गजाननः

द्वादशैतानि नमामि च पठेच्छणु यादपि

विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा

संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते

शुक्लां वर धरं देवं शशि वर्ण चतुर्भुजम

प्रसन्न वदनं ध्यायेत सर्वविघ्नोप शान्तये

अभीष्ट सिध्धार्थ सिद्ध्यर्थं पूजितो य सुरासुरै

सर्व विघ्नच्छेद तस्मै गणाधिपते नमः

इसके पश्चात् सद्गुरु का आवाहन और पूजन करें

गुरु आवाहन मंत्र :-

सहस्रदल पद्मस्थ मंत्रात्मा नमुज्ज्वलम

तस्योपरि नादविन्दो मर्घ्ये सिन्हास्नोज्ज्वले

चिंतयेन्निज गुरुम नित्यं रजता चल सन्निभम

वीरासन समासीनं मुद्रा भरण भूषितं

इसके पश्चात् गुरु देव का पंचोपचार विधि से पूजन करें :-


ॐ गंगाजले स्नानियम समर्पयामि श्री गुरुभ्यै नमः

ॐ अक्षतं समर्पयामि भगवते श्री गुरुभ्यै नमः

ॐ वस्त्रं समर्पयामि भगवान् श्री गुरुभ्यै नमः

ॐ चन्दनं समर्पयामि भगवान् गुरुभ्यै इदं आगच्छ इहतिष्ठ

ॐ विल्वपत्रम समर्पयामि भगवते श्री गुरुभ्यै नमः

ॐ पुष्पं समर्पयामि भगवान् श्री गुरुभ्यै नमः

ॐ नवेद्यम समर्पयामि भगवान् गुरुभ्यै इदं आगच्छ इहतिष्ठ


इसके पश्चात् गुरुस्तोत्र का पाठ करें :-

श्री गुरुस्तोत्रम् :-

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१॥

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥२॥

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशालाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥३॥

स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं येन कृत्स्नं चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥४॥

चिद्रूपेण परिव्याप्तं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥५॥

सर्वश्रुतिशिरोरत्नसमुद्भासितमूर्तये ।
वेदान्ताम्बूजसूर्याय तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥६॥

चैतन्यः शाश्वतः शान्तो व्योमातीतोनिरञ्जनः ।
बिन्दूनादकलातीतस्तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥७॥

ज्ञानशक्तिसमारूढस्तत्त्वमालाविभूषितः ।
भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥८॥

अनेकजन्मसम्प्राप्तकर्मेन्धनविदाहिने ।
आत्मञ्जानाग्निदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥९॥

शोषणं भवसिन्धोश्च प्रापणं सारसम्पदः ।
यस्य पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१०॥

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः ।
तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥११॥

मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः ।
मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१२॥

गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् ।
गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१३॥

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम्
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुंतं नमामि ॥१४॥

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इसके पश्चात् पृथ्वी शुद्धि करण कर लें
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प्रथ्वी शुद्धि मंत्र :-

ॐ अपरषन्तु ये भूता ये भूता भूवि संस्थिता

ये भूता विघ्नकर्ता रश्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया

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इसके पश्चात् अक्षोभ ऋषि का पंचोपचार विधि से पूजन करें :-

ॐ गंगाजले स्नानियम समर्पयामि श्री अक्षोभ ऋषये नमः

ॐ अक्षतं समर्पयामि भगवते श्री अक्षोभ ऋषये नमः

ॐ वस्त्रं समर्पयामि भगवान् श्री अक्षोभ ऋषये नमः

ॐ चन्दनं समर्पयामि श्री अक्षोभ ऋषये नमः

ॐ विल्वपत्रम समर्पयामि श्री अक्षोभ ऋषये नमः

ॐ पुष्पं समर्पयामि भगवान् श्री अक्षोभ ऋषये नमः

ॐ नवेद्यम समर्पयामि भगवान् श्री अक्षोभ ऋषये नमः
तत्पश्चात निम्न मंत्र को २१ /५१ /एक माला जाप कर लें

" ॐ अक्षोभ्य ऋषये नम: "


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इसके पश्चात् माता के पूजन की प्रक्रिया प्रारंभ होता होती जिसमे सर्व प्रथम संकल्प के लिए हाथ की अंजुली पर पान , सुपारी , द्रव्य ( धन ) गंगाजल , अक्षत , पुष्प , तिल लेकर निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें :-

ॐ विष्णु विश्नुर्विष्णु श्री मद भगवतो महा पुरुषस्य विष्णो राज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्राह्मणोंह्विं द्वितीय प्रह्रार्द्धे , श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्त- मन्वन्तरे अष्टान्विशा तितमे युगे कलियुगे कलिप्रथम चरणे भूर्लोक जम्बू द्विपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्त देशे " अमुक नगरे " " अमुक ग्रामे " " अमुक स्थाने " वा बुद्धावतारे " अमुक नाम " संवत्सरे श्री सूर्य " अमुकायने " " अमुक तौ महा मांगल्य प्रद मासोत्तमे मासे " " अमुक मासे " " अमुक पक्षे " " अमुक तिथौ " " अमुक नक्षत्रो " " अमुक वासरे " " अमुक योगे " " अमुक करणे " " अमुक राशि स्थिते " देव गुरौ शेषेसु ग्रहेषु च यथा " अमुक शर्मा " महात्मनः मनोकामना पूर्ति , धन , जन , सुख सम्पदा प्रसन्नता परिवार सुख शांतिः , ग्राम सुख शांतिः हेतु , सफलता हेतु श्री तारा पूजन - कलश स्थापन - हवन - कर्म - आरती कर्म अहम् करिश्येत :::

तत्पश्चात

स्तुति :-

प्रत्यालीढ़ पदार्पिताग्ध्रीशवहृद घोराटटहासा
पराखड़गेन्दीवरकर्त्री खर्परभुजा हुंकार बीजोद्भवा,
खर्वानीलविशालपिंगलजटाजूटैकनागैर्युताजाड्यन्न्यस्य
कपालिके त्रिजगताम हन्त्युग्रतारा स्वयं

आवाहन :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं आगच्छय आगच्छय ::


आसन :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं आसनं समर्पयामि ::

पाद्य :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं पाद्यं समर्पयामि ::

अर्घ्य :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं अर्घ्यं समर्पयामि ::

आचमन :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं आचमनीयं निवेदयामि ::

मधुपर्क :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं मधुपर्कं समर्पयामि ::

आचमन :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं पुनराचमनीयम् निवेदयामि ::

स्नान :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं स्नानं निवेदयामि ::

वस्त्र :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं प्रथम वस्त्रं समर्पयामि ::

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं द्वितीय वस्त्रं समर्पयामि ::

आभूषण :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं आभूषणं समर्पयामि ::

सिन्दूर :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं सिन्दूरं समर्पयामि ::

कुंकुम :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं कुंकुमं समर्पयामि ::

गन्ध / इत्र :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि ::

पुष्प :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं पुष्पं समर्पयामि ::

धूप / अगरबत्ती :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं धूपं समर्पयामि ::

दीप :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं दीपं दर्शयामि ::

नैवेद्य :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं नैवेद्यं समर्पयामि ::

प्रणामाज्जलि / पुष्पांजलि :-


:: ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं महामाया त्रिगुणा या दिगम्बरी ::

पुष्पांजलिं समर्पयामि :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं पुष्पांजलिं समर्पयामि ::

नीराजन :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं नीराजन समर्पयामि ::

दक्षिणा :-

::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं दक्षिणां समर्पयामि ::

अपराधा क्षमा याचना :-

अपराधसहस्राणि क्रियंतेऽहर्निशं मया । 
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥१॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् । 
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥२॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि । 
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥३॥
अपराधशतं कृत्वा जगदंबेति चोचरेत् । 
यां गर्ति समबाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ॥४॥
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदंबिके । 
ड्रदानीमनुकंप्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ॥५॥
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् क। 
तत्सर्व क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥६॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानंदविग्रहे । 
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ॥७॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । 
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि ॥८॥

आरती :-