Friday, May 23, 2014

Mata Hingulaj Shodsopchar Pujan - माता हिंगुलाज षोडशोपचार पूजन - Hinglaj Pujan - Hinglaj Mandir Pakistan

माता हिंगुलाज साधना



माता हिंगुलाज का उद्भव दक्ष यज्ञ के समय जब माता सती ने आत्मदाह कर लिया एवं इसके पश्चात् भगवन शिव माता के मृत शरीर को लेकर ब्रह्माण्ड के चक्कर काटने लगे - ब्रह्माण्ड का संतुलन डगमगाने लगा उस समय सभी देवताओं की प्रार्थना के फलस्वरूप भगवान् विष्णु ने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया कि सती के मृत शरीर कि छिन्न - भिन्न कर दो उस समय सुदर्शन चक्र ने सती के अंगो को काटना प्रारम्भ किया और इस क्रम में माता के ब्रह्मरंध्र का हिस्सा जहाँ पर गिरा वहाँ एक शक्तिपीठ का अस्तित्व बना जिसे ( हिंगुल / हिंगुलाज ) शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है -!

यह शक्ति पीठ भारत से बाहर पाकिस्तान में अवस्थित है ( कराची शहर से १२५ किलोमीटर उत्तर पूर्व बलूचिस्तान क्षेत्र में ) यहाँ कि अधिष्ठात्री शक्ति कोट्टरी और भैरव भीमलोचन के नाम से जाने जाते हैं -!

आने वाले नवरात्रों और माता हिंगुलाज के भक्तों कि मांग पर मैं माता हिंगुलाज कि पूजा विधि का वर्णन करने जा रहा हूँ जिसका आधार वैदिक और षोडशोपचार पूजन है - किन्तु किसी भी पूजन में सामर्थ्य बहुत महत्व रखती है इसलिए जो भी भक्त इस विस्तृत पूजन का विधान न कर सकें उनके लिए पंचोपचार पूजन का विधान भी उनता ही महत्व रखता है और बराबर फल ही मिलता है -!

लेकिन आलस्य और प्रमाद कि वजह से यदि विधान को छोटा करने कि कोशिश कि जाती है तो उसका परिणाम भी उसी तरह छोटा होता है - इसलिए मैं अपने सभी विधानों में एक ही बात मुख्य रूप से सम्मिलित करता हूँ कि यदि सम्भव है और आपकी सामर्थ्य है तो वैदिक विधान का ही पालन करें यदि आपके पास सामर्थ्य नहीं है तो लघु विधान का पालन करें - इसके अतिरिक्त यदि मेरे लिखे हुए विधान और आपके पारम्परिक विधान में कोई विषमता है तो आप अपने पारम्परिक / लोक विधान का पालन करें :-!


माता को लाल रंग एवं गुलाब का इत्र बहुत पसंद है

माता कि पूजा कई उपचारों से कि जाती है जिसमे कि :-

१. पंचोपचार :-
अ. गंध
ब. पुष्प
स. धूप
द. दीप
य. नैवेद्य

२. दशोपचार :-
1. पाद्य
2. अर्घ्य
3. आचमन
4. मधुपर्क
5. पुनराचमन
6. गन्ध
7. पुष्प
8. धूप
9. दीप
10. नैवेद्य

३. षोडशोपचार :- षोडशोपचार के मामले में कभी भी एक सामान क्रम और समान चरण नहीं मिलते हैं क्योंकि साधक के पास उपलब्ध साधनों और श्रद्धा तथा पूजा के प्रकार के आधार पर इनके क्रम और संख्या में परिवर्तन हो जाते हैं अतएव इस सम्बन्ध में भ्रमित न हों और अपनी सामर्थ्यानुसार चरणों का अनुसरण करें ( जहाँ पर संख्या बढ़ जाती है वहाँ वास्तव में मूल चरण के उप चरण जुड़ जाते हैं या जोड़ दिए जाते हैं जैसे कि उदाहरणार्थ - मधुपर्क = दूध , दही , शक्कर / चीनी , घी , शहद - अब यहाँ पर यदि देखा जाये तो मधुपर्क के पांच उप चरण बन गए )

प्रथम पूजन खंड

आवाहन

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय आगच्छय आगच्छय ::

आसन

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय आसनं समर्पयामि ::

पाद्य

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय पाद्यं समर्पयामि ::
अर्घ्य

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय अर्घ्यं समर्पयामि ::
आचमन

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय आचमनीयं निवेदयामि ::
मधुपर्क

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय मधुपर्कं समर्पयामि ::
आचमन

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय पुनराचमनीयम् निवेदयामि ::
स्नान

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय स्नानं निवेदयामि ::
वस्त्र

1. ::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय प्रथम वस्त्रं समर्पयामि ::



2. ::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय द्वितीय वस्त्रं समर्पयामि ::
आभूषण

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय आभूषणं समर्पयामि ::
सिन्दूर

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय सिन्दूरं समर्पयामि ::

कुंकुम

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय कुंकुमं समर्पयामि ::
गन्ध / इत्र

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि ::
पुष्प

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय पुष्पं समर्पयामि ::
धूप / अगरबत्ती

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय धूपं समर्पयामि ::
दीप

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय दीपं दर्शयामि ::
नैवेद्य

::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय नैवेद्यं समर्पयामि ::

प्रणामाज्जलि / पुष्पांजलि

:: ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय नमः स्वाहा
ब्रह्मरन्ध्रं हिंगुलायाम् भैरवः भीमलोचनः
कोट्टरी सा महामाया त्रिगुणा या दिगम्बरी ::
पुष्पांजलिं समर्पयामि
नीराजन
::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय नीराजनं समर्पयामि ::
दक्षिणा
::ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृतरूपिणी तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय दक्षिणां समर्पयामि ::
अपराधा क्षमा याचना
अपराधसहस्राणि क्रियंतेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥१॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥२॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥३॥
अपराधशतं कृत्वा जगदंबेति चोचरेत् ।
यां गर्ति समबाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ॥४॥
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदंबिके ।
ड्रदानीमनुकंप्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ॥५॥
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् क।
तत्सर्व क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥६॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानंदविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ॥७॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि ॥८॥




Saturday, May 10, 2014

Mata Mahakali Shodsopchar Pujan Vidhi - माता महाकाली षोडशोपचार पुजन विधि

Mata Mahakali Shodsopchar Pujan Vidhi - माता महाकाली षोडशोपचार पुजन विधि


माता महाकाली षोडशोपचार पुजन विधि :-
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ध्यान :-
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ॐ कराल वदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम
आद्यं कालिकां दिव्यां मुंडमाला विभूषिताम
सद्यश्छिन्ना शिरः खडग वामोर्ध्व कराम्बुजाम
महामेघप्रभाम् कालिकां तथा चैव दिगम्बराम्


कंठावसक्तमुंडाली गलद्वधिर चर्चिताम्
कर्णावतंसतानीत शव युग्म भयानकाम
घोरदृष्टाम करालास्यां पीनोन्नत पयोधराम
शवानाम करसंघातै कृतकांची हसनमुखीम्


सृक्कद्वय गलद्वक्त धारा विस्फुरिताननाम
घोररावां महारौद्रीं श्मशानालय वासिनीम्
बालार्क मंडलाकारां लोचन त्रितयांविताम्
दंतुरां दक्षिण व्यापि मुक्तालविकचोच्चयाम


शव रूप महादेव हृदयोपरि संस्थिताम्
शिवाभिर्घोर रावाभिष्चतुर्दिक्षु समन्विताम्
महाकालेन च समं विपरीत रतातुराम
सुख प्रसन्न वदनां स्मेराननसरोरुहाम


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पुष्प समर्पण :-
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ॐ देवेशि भक्ति सुलभे परिवार समन्विते
यावत्तवां पूजयिष्यामि तावद्देवी स्थिरा भव
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पुष्पांजलि :-
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ॐ महाकालं यजेद देव्या दक्षिणे धूम्रवर्णकम्
विभ्रतं दंडखटवांगौ दृष्टा भीम मुखं शिवम्
व्याघ्र चर्मावृतकटिं तुन्दिलं रक्त वासनम्
त्रिनेत्र मूर्द्धवकेशन्च मुण्डमाला विभूषिताम
जटाभीषण सच्चंद्र खण्डं तेजो जवलननिव
ॐ हूं स्फ्रों यां रां लां क्रौं महाकाल भैरव
सर्व विघ्ननाशय नाशय ह्रीं श्रीं फट स्वाहा
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नमस्कार
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शत्रुनाशकरे देवि ! सर्व सम्पत्करे शुभे
सर्व देवस्तुते ! कालिके ! त्वां नमाम्यहम

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१. आसन :- 
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प्रथम दिन कि पूजा में माँ को काले रंग के कपडे का / आम कि लकड़ी का सिंहासन जो काले रंग से रंगा गया हो समर्पित करें एवं माँ को उस पर विराजित करने इसके बाद फिर प्रत्येक दिन माँ के चरणों में निम्न मंत्र को बोलते हुए पुष्प / अक्षत समर्पित करें

ॐ आसनं भास्वरं तुङ्गं मांगल्यं सर्वमंगले
भजस्व जगतां मातः प्रसीद जगदीश्वरी

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा आसनं समर्पयामि )
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२. पाद्य :-
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 इस क्रिया में शीतल एवं सुवासित जल से चरण धोएं और ऐसा सोचें कि आपके आवाहन पर माँ दूर से आयी हैं और पाद्य समर्पण से माँ को रास्ते में जो श्रम हुआ लगा है उसे आप दूर कर रहे हैं

ॐ गंगादि सलिलाधारं तीर्थं मंत्राभिमंत्रिम
दूर यात्रा भ्रम हरं पाद्यं तत्प्रति गृह्यतां 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा पाद्यं समर्पयामि )
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३. उद्वर्तन :-
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 इस क्रिया में माँ के चरणों में सुगन्धित / तिल के तेल को समर्पित करते हैं

ॐ तिल तण्डुल संयुक्तं कुश पुष्प समन्वितं
सुगंधम फल संयुक्तंमर्ध्य देवी गृहाण में 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा उद्वर्तन तैलं समर्पयामि )
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४. आचमन :- 
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इस क्रिया में माँ को आचमनी से या लोटे से आचमन जल प्रदान करते हैं ( याद रहे कि जल समर्पित करने का क्रम आप मूर्ति और यदि जल कि निकासी कि सुगम व्यवस्था है तो कर सकते हैं किन्तु यदि आपने कागज के चित्र को स्थापित किया हुआ है तो चित्र के सम्मुख एक पात्र रख लें और जल से सम्बंधित सारी क्रियाएँ करके जल उसी पात्र में डालते जाएँ )

ॐ स्नानादिक विधायापि यतः शुद्धिख़ाप्यते
इदं आचमनीयं हि कालिके देवी प्रगृह्यताम् 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा आचमनीयम् समर्पयामि )
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५. स्नान :- 
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इस क्रिया में सुगन्धित पदार्थों से निर्मित जल से स्नान करवाएं ( जल में इत्र , कर्पूर , तिल , कुश एवं अन्य वस्तुएं अपनी सामर्थ्य या सुविधानुसार मिश्रित कर लें यदि सामर्थ्य नहीं है तो सदा जल भी पर्याप्त है जो पूर्ण श्रद्धा से समर्पित किया गया हो )

ॐ खमापः पृथिवी चैव ज्योतिषं वायुरेव च
लोक संस्मृति मात्रेण वारिणा स्नापयाम्यहम् 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा स्नानं निवेदयामि )
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६. मधुपर्क :- 
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इस क्रिया में ( पंचगव्य मिश्रित करें प्रथम दिन ( गाय का शुद्ध दूध , दही , घी , चीनी , शहद ) अन्य दिनों में यदि व्यवस्था कर सकें तो बेहतर है अन्यथा सिर्फ शहद से काम लिया जा सकता है

ॐ मधुपर्क महादेवि ब्रह्मध्धे कल्पितं तव
मया निवेदितम् भक्तया गृहाण गिरिपुत्रिके 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा मधुपर्कं समर्पयामि )


विशेष :- ध्यान रखें चन्दन या सिन्दूर में से कोई भी चीज मस्तक पर समर्पित न करें बल्कि माँ के चरणों में समर्पित करें
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७. चन्दन :- 
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इस क्रिया में सफ़ेद चन्दन समर्पित करें

ॐ मळयांचल सम्भूतं नाना गंध समन्वितं
शीतलं बहुलामोदम चन्दम गृह्यतामिदं 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा चन्दनं समर्पयामि )
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८. रक्त चन्दन :- 
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इस क्रिया में माँ को रक्त / लाल चन्दन समर्पित करें

ॐ रुक्तानुलेपनम् देवि स्वयं देव्या प्रकाशितं
तद गृहाण महाभागे शुभं देहि नमोस्तुते 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा रक्त चन्दनं समर्पयामि )
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९. सिन्दूर :- 
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इस क्रिया में माँ को सिन्दूर समर्पित करें

ॐ सिन्दूरं सर्वसाध्वीनाम भूषणाय विनिर्मितम्
गृहाण वर दे देवि भूषणानि प्रयच्छ में 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा सिन्दूरं समर्पयामि )
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१०. कुंकुम :- 
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इस क्रिया में माँ को कुंकुम समर्पित करें

ॐ जपापुष्प प्रभम रम्यं नारी भाल विभूषणम्
भाष्वरम कुंकुमं रक्तं देवि दत्तं प्रगृह्य में 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा कुंकुमं समर्पयामि )
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११. अक्षत :- 
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अक्षत में चावल प्रयोग करने होते हैं जो काले रंग में रंगे हुए हों

ॐ अक्षतं धान्यजम देवि ब्रह्मणा निर्मितं पुरा
प्राणंद सर्वभूतानां गृहाण वर दे शुभे 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा अक्षतं समर्पयामि )
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१२. पुष्प :- 
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माता के चरणो में पुष्प समर्पित करें ( फूलों एवं फूलमालाओं का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि यदि आपको काला गुलाब मिल जाये तो बहुत बढ़िया यदि नहीं मिलता तो लाल गुलाब उपयुक्त होगा किन्तु यदि स्थानीय या बाजारीय उपलब्धता के हिसाब से जो उपलब्ध हो वही प्रयोग करें )

ॐ चलतपरिमलामोदमत्ताली गण संकुलम्
आनंदनंदनोद्भूतम् कालिकायै कुसुमं नमः 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा पुष्पं समर्पयामि )
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१३. विल्वपत्र :- 
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माता के चरणों में बिल्वपत्र समर्पित करें ( कहीं कहीं पर उल्लेख मिलता कि देवी पूजा में बिल्वपत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है तो इस स्थिति में आप अपने लोक/ स्थानीय प्रचलन का प्रयोग करें )

ॐ अमृतोद्भवम् श्रीवृक्षं शंकरस्व सदाप्रियम
पवित्रं ते प्रयच्छामि सर्व कार्यार्थ सिद्धये 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा बिल्वपत्रं समर्पयामि )
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१४. माला :- 
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इस क्रिया में माँ को फूलों कि माला समर्पित करें

ॐ नाना पुष्प विचित्राढ़यां पुष्प मालां सुशोभताम्
प्रयच्छामि सदा भद्रे गृहाण परमेश्वरि 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा पुष्पमालां समर्पयामि )
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१५. वस्त्र :- 
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इस क्रिया में माता को वस्त्र समर्पित किये जाते हैं ( एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि वस्त्रों कि लम्बाई १२ अंगुल से कम न हो - प्रथम दिन कि पूजा में काले वस्त्र समर्पित किये जाने चाहिए तत्पश्चात [ मौली धागा जिसे प्रायः पुरोहित रक्षा सूत्र के रूप में यजमान के हाथ में बांधते हैं वह चढ़ाया जा सकता है लेकिन लम्बाई १२ अंगुल ही होगी )

अ. ॐ तंतु संतान संयुक्तं कला कौशल कल्पितं
सर्वांगाभरण श्रेष्ठं वसनं परिधीयताम् 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा प्रथम वस्त्रं समर्पयामि )

ब. ॐ यामाश्रित्य महादेवि जगत्संहारकः सदा
तस्यै ते परमेशान्यै कल्पयाम्युत्रीयकम

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा द्वितीय वस्त्रं समर्पयामि )
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१५. धूप :- 
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इस क्रिया में सुगन्धित धुप समर्पित करनी है

ॐ गुग्गुलम घृत संयुक्तं नाना भक्ष्यैश्च संयुतम
दशांग ग्रसताम धूपम् कालिके देवि नमोस्तुते 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा धूपं समर्पयामि )
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१६. दीप :- 
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इस क्रिया में शुद्ध घी से निर्मित दीपक समर्पित करना है जो कपास कि रुई से बनी बत्तियों से निर्मित हो

ॐ मार्तण्ड मंडळांतस्थ चन्द्र बिंबाग्नि तेजसाम्
निधानं देवि कालिके दीपोअयं निर्मितस्तव भक्तितः 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा दीपं दर्शयामि )
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१७. इत्र :- 
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इस क्रिया में माता को इत्र / सुगन्धित सेंट समर्पित करना है

ॐ परमानन्द सौरभ्यम् परिपूर्णं दिगम्बरम्
गृहाण सौरभम् दिव्यं कृपया जगदम्बिके 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि )
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१८. कर्पूर दीप :- 
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इस क्रिया में माँ को कर्पूर का दीपक जलाकर समर्पित करना है

ॐ त्वम् चन्द्र सूर्य ज्योतिषं विद्युद्गन्योस्तथैव च
त्वमेव जगतां ज्योतिदीपोअयं प्रतिगृह्यताम् 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा कर्पूर दीपम दर्शयामि )
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१९. नैवेद्य :- 
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इस क्रिया में माता को फल - फूल या भोजन समर्पित करते हैं भोजन कम से कम इतनी मात्रा में हो जो एक आदमी के खाने के लिए पर्याप्त हो बाकि सारा कुछ सामर्थ्यानुसार )

ॐ दिव्यांन्नरस संयुक्तं नानाभक्षैश्च संयुतम
चौष्यपेय समायुक्तमन्नं देवि गृहाण में 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा नैवेद्यं समर्पयामि )
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२०. खीर :- 
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इस क्रिया में ढूध से निर्मित खीर चढ़ाएं 

ॐ गव्यसर्पि पयोयुक्तम नाना मधुर मिश्रितम्
निवेदितम् मया भक्त्या परमान्नं प्रगृह्यताम् 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा दुग्ध खीरम समर्पयामि )
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२१. मोदक :- 
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इस क्रिया में माँ को लड्डू समर्पित करने हैं

ॐ मोदकं स्वादु रुचिरं करपुरादिभिरणवितं
मिश्र नानाविधैर्द्रुव्यै प्रति ग्रह्यशु भुज्यतां 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा मोदकं समर्पयामि )
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२२. फल :- 
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इस क्रिया में माता को ऋतु फल समर्पित करने होते हैं

ॐ फल मूलानि सर्वाणि ग्राम्यांअरण्यानि यानि च
नानाविधि सुंगंधीनि गृहाण देवि ममाचिरम

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा ऋतुफलं समर्पयामि )
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२३. जल :- 
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इस क्रिया में खान - पान के पश्चात् अब माता को जल समर्पित करें

ॐ पानीयं शीतलं स्वच्छं कर्पूरादि सुवासितम्
भोजने तृप्ति कृद्य् स्मात कृपया प्रतिगृह्यतां

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा जलम समर्पयामि )
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२४. करोद्वर्तन जल :- 
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इस क्रिया में माता को हाथ धोने के लिए जल प्रदान करें

ॐ कर्पूरादीनिद्रव्याणि सुगन्धीनि महेश्वरि
गृहाण जगतां नाथे करोद्वर्तन हेतवे 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा करोद्वर्तन जलम समर्पयामि )
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२५. आचमन :- 
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इस क्रिया में माता को पुनः आचमन करवाएं

ॐ अमोदवस्तु सुरभिकृतमेत्तदनुत्तमम्
गृह्णाचमनीयम तवं माया भक्त्या निवेदितम् 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा पुनराचमनीयम् समर्पयामि )
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२६. ताम्बूल :- 
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इस क्रिया में माता को सुगन्धित पान समर्पित करें

ॐ पुन्गीफलम महादिव्यम नागवल्ली दलैर्युतम्
कर्पूरैल्लास समायुक्तं ताम्बूल प्रतिगृह्यताम् 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा ताम्बूलं समर्पयामि )
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२७. काजल :- 
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 माता को काजल समर्पित करें

ॐ स्निग्धमुष्णम हृद्यतमं दृशां शोभाकरम तव
गृहीत्वा कज्जलं सद्यो नेत्रान्यांजय कालिके 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा कज्जलं समर्पयामि )
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२८. महावर :- 
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इस क्रिया में माँ को लाला रंग का महावर समर्पित करते हैं ( लाल रंग एवं पानी का मिश्रण जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पैरों में लगाती हैं )

ॐ चलतपदाम्भोजनस्वर द्युतिकारि मनोहरम
अलकत्कमिदं देवि मया दत्तं प्रगृह्यताम् 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा महावरम समर्पयामि )
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२९. चामर :- 
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इस क्रिया में माँ को चामर / पंखा ढलना होता है

ॐ चामरं चमरी पुच्छं हेमदण्ड समन्वितम्
मायार्पितं राजचिन्ह चामरं प्रतिगृह्यताम्
 
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा चामरं समर्पयामि )
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३० . घंटा वाद्यम् :- 
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इस क्रिया में माँ के सामने घंटा / घंटी बजानी होती है ( यह ध्वनि आपके घर और आपसे सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर करती है एवं आपके मन में प्रसन्नता और हर्ष को जन्म देती है )

ॐ यथा भीषयसे दैत्यान् यथा पूरयसेअसुरम
तां घंटा सम्प्रयच्छामि महिषधिनी प्रसीद में 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा घंटा वाद्यं समर्पयामि )
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३१. दक्षिणा :- 
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इस क्रिया में माँ को दक्षिणा धन समर्पित किया जाता है - ( जो कि सामर्थ्यानुसार है )

ॐ काञ्चनं रजतोपेतं नानारत्न समन्वितं
दक्षिणार्थम् च देवेशि गृहाण त्वं नमोस्तुते 

( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा आसनं समर्पयामि )
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32. पुष्पांजलि :- 
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ॐ काली काली महाकाली कालिके पाप नाशिनी
काली कराली निष्क्रान्ते कालिके तवननमोस्तुते
ॐ उत्तिष्ठ देवी चामुण्डे शुभां पूजा प्रगृह्य में
कुरुष्व मम कल्याणमस्टाभि शक्तिभिः सह
भुत प्रेत पिशाचेभ्यो रक्षोभ्यश्च महेश्वरि
देवेभ्यो मानुषोभ्योश्च भयेभ्यो रक्ष मा सदा
सर्वदेवमयीं देवीं सर्व रोगभयापहाम
ब्रह्मेश विष्णु नमिताम् प्रणमामि सदा उमां
आय़ुर्ददातु में काली पुत्रा नादि सदा शिवा
अर्थ कामो महामाया विभवं सर्व मङ्गला
ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि पुष्पांजलिं समर्पयामि
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33. नीराजन :- 
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इस क्रिया में पुनः माँ कि प्राथमिक आरती उतारते हैं जिसमे सिर्फ कर्पूर का प्रयोग होता है

ॐ कर्पूरवर्ति संयुक्तं वहयिना दीपितंचयत
नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके
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३५. क्षमा प्रार्थना :-
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ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित स्खलितम् मम
क्षम्यतां तज्जगन्मातः कालिके देवी नमोस्तुते
ॐ विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं यदरचितम्
पुर्णम्भवतु तत्सर्वं त्वप्रसादान्महेश्वरी
शक्नुवन्ति न ते पूजां कर्तुं ब्रह्मदयः सुराः
अहं किं वा करिष्यामि मृत्युर्धर्मा नरोअल्पधिः
न जाने अहं स्वरुप ते न शरीरं न वा गुणान्
एकामेव ही जानामि भक्तिं त्वचर्णाबजयोः
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३६. आरती :- 
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इस क्रिया में माता कि आरती उतारते हैं और यह चरण आपकी उस काल कि साधना के समापन का प्रतीक है -( इसके लिए अलग से कोई आरती जलने कि कोई जरुरत नहीं है आप उसी दीपक का उपयोग करेंगे जो आपने पूजा के प्रारम्भ में घी का दीपक जलाया था )




जय माँ महाकाली